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"माँगना तुम्हीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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करूँ हित चिंतन | करूँ हित चिंतन | ||
साँसों में बसाकर। | साँसों में बसाकर। | ||
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यौवन की ये धूप | यौवन की ये धूप | ||
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न आयु -लिंग भेद | न आयु -लिंग भेद | ||
गङ्गा नहाके आए। | गङ्गा नहाके आए। | ||
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कुछ न करो | कुछ न करो | ||
कभी पल दो पल | कभी पल दो पल | ||
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मिलन का प्रभात | मिलन का प्रभात | ||
सुख के दिन-रात। | सुख के दिन-रात। | ||
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लौटना कभी | लौटना कभी | ||
किस गाँव की गली | किस गाँव की गली | ||
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मेरा न कोई गाँव | मेरा न कोई गाँव | ||
घर-द्वार भी नहीं। | घर-द्वार भी नहीं। | ||
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उजाड़ वन | उजाड़ वन | ||
हमने बसाए थे, | हमने बसाए थे, |
21:49, 11 जून 2019 का अवतरण
57
नत है शीश
करता हूँ वंदन
तेरा ही सुख माँगूँ ,
प्रतिपल मैं
करूँ हित चिंतन
साँसों में बसाकर।
58
रंग या रूप
यौवन की ये धूप
माना सब नश्वर,
मन के भाव-
न आयु -लिंग भेद
गङ्गा नहाके आए।
59
कुछ न करो
कभी पल दो पल
करो जो सुमिरन,
माँगना तुम्हीं
मिलन का प्रभात
सुख के दिन-रात।
60
लौटना कभी
किस गाँव की गली
मुझे पता ही नहीं
मैं बनजारा
मेरा न कोई गाँव
घर-द्वार भी नहीं।
61
उजाड़ वन
हमने बसाए थे,
फूल भी खिलाए थे
भूलके कभी
तोड़ी न कोई कली
क्या यही ग़ुनाह था!