भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तिलस्म / संतोष श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:14, 18 जून 2019 के समय का अवतरण

कितना तिलिस्मी लगता है
सांझ का धुंधलका
फिजाओं में बिखरे
धुंधले से रंग
सलेटी ,ज़रा ज़रा से नारंगी
समंदर अनुरागी नज़र आता है
प्रेम के रंग के
झीने आवरण में
धीरे-धीरे धुंधलका
हटने लगता है
और प्रेम के ज़ख्म
उभरने लगते हैं
जख्मों को इंतजार है नर्म फाहे का
जो सदियों पहले
जख्मों की बढ़ती तादाद में
खत्म हो चुका
रह गया सिर्फ धुंधलका
जो ज़ख्मों को अपने में समेट
कितना अपना लगता है