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"राज़ क्या है ? / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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घिर गया तिमिर गहरा,<br>
 
घिर गया तिमिर गहरा,<br>
 
उठ रहा दर्द है !<br>
 
उठ रहा दर्द है !<br>
हवा सर्द है !<br>:
+
हवा सर्द है !<br>

+
:(20) अनाहूत स्थितियों से
+
 
+
जीवन दिया है<br>
+
तो<br>
+
प्यार भी दो !<br>
+
प्यास दी है<br>
+
रसधार भी दो !<br><br>
+
 
+
जब दिया है रूप<br>
+
आत्मा को<br>
+
सुघड़ तन-शृंगार भी दो !<br>
+
उर दिया है<br>
+
भावना का ज्वार भी दो !<br><br>
+
 
+
मत करो वंचित<br>
+
सहज अनुभूतियों से<br>
+
इस तरह -<br>
+
जीवन कि जीना बोझ बन जाए,<br>
+
सब उम्र कट जाए<br>
+
बिन गीत गाए<br>
+
स्नेह-सुषमा का <br>
+
सुखद सावन सजाए !<br><br>
+
 
+
ज्योति का आकाश<br>
+
आँखों को दिया<br>
+
तो<br>
+
अनगिनत सपने सुहाने<br>
+
झूलने दो !<br>
+
दर्द आँहों से<br>
+
तनिक तो<br>
+
चेतना को भूलने दो !<br><br>
+
 
+
मत कसो<br>
+
मजबूरियों की रस्सियों से<br>
+
इस तरह —<br>
+
पल भर<br>
+
फड़फड़ा भी जो न पाएँ<br>
+
वासनाओं के विखंडित पंख !<br>
+
अनपेक्षित घृणा की<br>
+
कील मत ठोंको<br>
+
धड़कते वक्ष पर !<br>
+
अंगार मत फेंको<br>
+
सरल आसक्त आँखों पर !<br><br>
+
 
+
जीवन दिया है<br>
+
तो<br>
+
लेने दो<br>
+
हर फूल की मधु गंध,<br>
+
जीवन दिया है<br>
+
तो<br>
+
सोने दो<br>
+
हर लता के अंक में निर्बन्ध !<br>
+

06:48, 16 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

हवा सर्द है !
रात खामोश है
जिस तरह चुप तुम्हारे अधर !

बात क्या है ?
राज़ क्या है ?
कि जो सो गयी हर लहर !

दे रही नींद पहरा,
घिर गया तिमिर गहरा,
उठ रहा दर्द है !
हवा सर्द है !