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"प्रेम है अपना / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | मधुर ध्वनि में इसको गाना | ||
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+ | आँख मूँद हमें है जपते जाना | ||
+ | गंगाजल-सा शीतल मन है | ||
+ | और दीप्त शिखा-सा मेरा तन है | ||
+ | पत्र-पुष्प काँटों में से चुनती हूँ | ||
+ | जीवन विरह का आँगन-उपवन है | ||
+ | भगवद्गीता के अमृत-रस-सा | ||
+ | घूँट-घूँटकर तुम पीते जाना | ||
+ | वचन-वचन पावन श्लोकों-सा | ||
+ | तर्कों में इसको न उलझाना | ||
+ | तुमने कानों में रस घोला | ||
+ | होंठों पर मुस्कान सजाई | ||
+ | रोम-रोम प्रियतम बोला | ||
+ | कामनाओं ने ली अँगड़ाई | ||
+ | उपनिषदों के तत्त्वमसि-सा | ||
+ | साँस-साँस तुम्हें रटते जाना | ||
+ | तुम चाहो इसको जो समझो | ||
+ | मैंने तुम्हें परब्रह्म-सा माना | ||
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09:14, 28 जून 2019 के समय का अवतरण
वेदों की ऋचा-सा प्रेम अपना
मधुर ध्वनि में इसको गाना
अक्षर-अक्षर पावन मन्त्रों- सा
आँख मूँद हमें है जपते जाना
गंगाजल-सा शीतल मन है
और दीप्त शिखा-सा मेरा तन है
पत्र-पुष्प काँटों में से चुनती हूँ
जीवन विरह का आँगन-उपवन है
भगवद्गीता के अमृत-रस-सा
घूँट-घूँटकर तुम पीते जाना
वचन-वचन पावन श्लोकों-सा
तर्कों में इसको न उलझाना
तुमने कानों में रस घोला
होंठों पर मुस्कान सजाई
रोम-रोम प्रियतम बोला
कामनाओं ने ली अँगड़ाई
उपनिषदों के तत्त्वमसि-सा
साँस-साँस तुम्हें रटते जाना
तुम चाहो इसको जो समझो
मैंने तुम्हें परब्रह्म-सा माना