"पॉल रॉब्सन के नाम / पाब्लो नेरूदा" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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प्रतीक्षा करती हुई | प्रतीक्षा करती हुई | ||
− | + | अन्धेरे से हुई अलग रोशनी | |
रात से अलग हुआ दिन | रात से अलग हुआ दिन | ||
और धरती आदिम जल से | और धरती आदिम जल से | ||
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हमें जकड़ने के लिए | हमें जकड़ने के लिए | ||
− | जब बढ़ रहा था | + | जब बढ़ रहा था अन्धेरा |
धरती के भीतर बढ़ रही थीं जड़ें | धरती के भीतर बढ़ रही थीं जड़ें | ||
− | + | अन्धे पेड़ लटक रहे थे | |
रोशनी के लिए | रोशनी के लिए | ||
सूरज थर्रा उठा था | सूरज थर्रा उठा था | ||
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और जानवर | और जानवर | ||
धीरे-धीरे बदल रहे थे अपना आकार | धीरे-धीरे बदल रहे थे अपना आकार | ||
− | धीरे-धीरे बना रहे थे | + | धीरे-धीरे बना रहे थे स्वयँ को वे |
जल और वायु के अनुकूल | जल और वायु के अनुकूल | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
तुम हमेशा आवाज़ रहे मनुष्य की | तुम हमेशा आवाज़ रहे मनुष्य की | ||
आकार लेती धरती का गीत रहे | आकार लेती धरती का गीत रहे | ||
− | प्रकृति की गति रहे और नदी का | + | प्रकृति की गति रहे और नदी का सँगीत रहे |
तुम्हारे दिल पर | तुम्हारे दिल पर | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 43: | ||
जैसे किसी चट्टान पर गिरी कोई नदी | जैसे किसी चट्टान पर गिरी कोई नदी | ||
और चट्टान गा उठी | और चट्टान गा उठी | ||
− | सब मूक लोगों की | + | सब मूक लोगों की सँगठित आवाज़ में |
तुम्हारी आवाज़ ने | तुम्हारी आवाज़ ने | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 49: | ||
सब चीज़ों, सब लोगों के रक्त को | सब चीज़ों, सब लोगों के रक्त को | ||
और धरती व आकाश | और धरती व आकाश | ||
− | अग्नि औ’ | + | अग्नि औ’ अन्धेरा औ’ पानी |
जाग उठे सब तुम्हारे गीतों से | जाग उठे सब तुम्हारे गीतों से | ||
पर बाद में | पर बाद में | ||
− | फिर | + | फिर अन्धेरा छा गया आकाश पर |
निकली हरी लपट | निकली हरी लपट | ||
भय, युद्ध, पीड़ा और कष्टों से | भय, युद्ध, पीड़ा और कष्टों से | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
राख बधित लोगों की | राख बधित लोगों की | ||
जो भट्टियों में चले गए | जो भट्टियों में चले गए | ||
− | अपने माथे पर | + | अपने माथे पर नम्बर चिपकाए |
केश रहित | केश रहित | ||
स्त्री-पुरुष, जवान औ’ बूढ़े | स्त्री-पुरुष, जवान औ’ बूढ़े | ||
इकट्ठे हुए | इकट्ठे हुए | ||
− | + | पोलैण्ड, उक्रअईना, अम्सटर्डम और प्राग में | |
दोबारा | दोबारा | ||
पंक्ति 78: | पंक्ति 78: | ||
तब | तब | ||
पॉल रॉब्सन | पॉल रॉब्सन | ||
− | तुमने | + | तुमने गाए गीत |
और पुनः इस धरती पर | और पुनः इस धरती पर | ||
सुनी गई | सुनी गई | ||
पंक्ति 85: | पंक्ति 85: | ||
हमें याद करा रही थी | हमें याद करा रही थी | ||
− | शानदार, | + | शानदार, शान्त, अनगढ़ और निश्छल |
धरती की आवाज़ | धरती की आवाज़ | ||
कि हम अब भी आदमी हैं | कि हम अब भी आदमी हैं | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 95: | ||
अपराध से | अपराध से | ||
एक बार फिर रोशनी | एक बार फिर रोशनी | ||
− | अलग हुई थी | + | अलग हुई थी अन्धेरे से |
− | + | अबकी बार | |
गिरी उदासी | गिरी उदासी | ||
हिरोशिमा पर | हिरोशिमा पर | ||
पंक्ति 103: | पंक्ति 103: | ||
शेष नहीं बचा कुछ भी | शेष नहीं बचा कुछ भी | ||
नहीं बची एक भी चिड़िया | नहीं बची एक भी चिड़िया | ||
− | + | ख़ाली किसी खिड़की पर गा सके जो | |
बिलखते अपने बच्चे के साथ | बिलखते अपने बच्चे के साथ | ||
नहीं बची एक भी माँ | नहीं बची एक भी माँ | ||
पंक्ति 111: | पंक्ति 111: | ||
आकाश से गिरी मौत की ख़ामोशी जब | आकाश से गिरी मौत की ख़ामोशी जब | ||
− | और | + | और फिर |
मनुष्य की आवाज़ के | मनुष्य की आवाज़ के | ||
पुनरुत्थान के लिए | पुनरुत्थान के लिए | ||
गहरे कहीं गूँजती आशाओं के लिए | गहरे कहीं गूँजती आशाओं के लिए | ||
पिता औ’ भाई पॉल | पिता औ’ भाई पॉल | ||
− | तुमने | + | तुमने गाए गीत |
− | + | फिर | |
तुम्हारे हृदय की नदी | तुम्हारे हृदय की नदी | ||
चौड़ी और गहरी थी अधिक | चौड़ी और गहरी थी अधिक | ||
पंक्ति 127: | पंक्ति 127: | ||
सिर्फ़ नीग्रो आवाज़ का | सिर्फ़ नीग्रो आवाज़ का | ||
सिर्फ़ अपनी जाति में कहूँ तुम्हें महान | सिर्फ़ अपनी जाति में कहूँ तुम्हें महान | ||
− | अपने | + | अपने सँगीत की ख़ूबसूरत धुनों के बीच |
− | यद्यपि तुमने | + | यद्यपि तुमने गाए गीत |
केवल उन काले बच्चों के बारे में | केवल उन काले बच्चों के बारे में | ||
जिन्हें हथकड़ी पहनाई थी | जिन्हें हथकड़ी पहनाई थी | ||
पंक्ति 158: | पंक्ति 158: | ||
ज्वालामुखी की भूमि पर | ज्वालामुखी की भूमि पर | ||
और अग्नि में भस्म हुई | और अग्नि में भस्म हुई | ||
− | सतयुगी | + | सतयुगी धर्मान्धता |
शिकारी था उत्तेजित और अविश्वासी | शिकारी था उत्तेजित और अविश्वासी | ||
तब तुम रुके नहीं, गाते रहे सदा ही | तब तुम रुके नहीं, गाते रहे सदा ही | ||
पंक्ति 168: | पंक्ति 168: | ||
बने तुम नदी कभी भूमिगत | बने तुम नदी कभी भूमिगत | ||
औ’ कभी तुमने भेदा | औ’ कभी तुमने भेदा | ||
− | गहन | + | गहन अन्धेरे में झलकते प्रकाश को |
तुम | तुम | ||
मरते हुए सम्मान की | मरते हुए सम्मान की | ||
− | + | अन्तिम तलवार थे | |
− | ज़ख़्मी प्रकाश के | + | ज़ख़्मी प्रकाश के अन्तिम काँटे थे तुम |
सदा बनी रहने वाली गड़गड़ाहट थे | सदा बनी रहने वाली गड़गड़ाहट थे | ||
पंक्ति 179: | पंक्ति 179: | ||
रक्षक थे आदमी की रोटी के | रक्षक थे आदमी की रोटी के | ||
सम्मान थे | सम्मान थे | ||
− | + | सँघर्ष थे | |
आशा थे | आशा थे | ||
प्रकाश थे मनुष्य के लिए | प्रकाश थे मनुष्य के लिए | ||
पंक्ति 185: | पंक्ति 185: | ||
हमारे लिए सूरज थे | हमारे लिए सूरज थे | ||
अमरीकी उपनगरों के सूरज तुम | अमरीकी उपनगरों के सूरज तुम | ||
− | सूरज थे | + | सूरज थे एण्डेस की लाल बर्फ़ के |
तुम हमारी रोशनी के प्रहरी थे | तुम हमारी रोशनी के प्रहरी थे | ||
गाओ | गाओ | ||
कॉमरेड गाओ | कॉमरेड गाओ | ||
− | धरती के भाई तुम गाओ | + | धरती के भाई ! तुम गाओ |
− | अग्नि के अच्छे पिता | + | अग्नि के अच्छे पिता ! |
हम सबके लिए गाओ | हम सबके लिए गाओ | ||
उन सबके लिए गाओ | उन सबके लिए गाओ | ||
जो मछलियाँ पकड़ते हैं | जो मछलियाँ पकड़ते हैं | ||
या ठोंकते हैं कीलें अपने हथौड़ों से | या ठोंकते हैं कीलें अपने हथौड़ों से | ||
− | कातते हैं रेशम के | + | कातते हैं रेशम के कठोर धागे |
या कूटते हैं काग़ज़ की लुगदी | या कूटते हैं काग़ज़ की लुगदी | ||
छापते हैं जो मशीनों पर रात-दिन | छापते हैं जो मशीनों पर रात-दिन | ||
पंक्ति 205: | पंक्ति 205: | ||
पिस रहे हैं दोहरे अत्याचार में | पिस रहे हैं दोहरे अत्याचार में | ||
और जो खड़े हैं भट्टी के सामने | और जो खड़े हैं भट्टी के सामने | ||
− | पिघलते | + | पिघलते ताम्बे के लिए |
गलते लोहे के लिए | गलते लोहे के लिए | ||
बारह हज़ार फ़ीट ऊपर | बारह हज़ार फ़ीट ऊपर | ||
− | + | एण्डेस के बँजर अकेलपन में | |
गाओ | गाओ | ||
पंक्ति 229: | पंक्ति 229: | ||
अब | अब | ||
दूर उराल में | दूर उराल में | ||
− | + | पैण्टागन की खोई हुई बर्फ़ पर | |
तुम गा रहे हो | तुम गा रहे हो | ||
− | + | अन्धेरे के पार | |
दूर बहुत दूर | दूर बहुत दूर | ||
और समुद्र | और समुद्र | ||
− | + | बँजर भूमि | |
भट्टी झोंकने वाला वह युवक | भट्टी झोंकने वाला वह युवक | ||
घूमता हुआ शिकारी | घूमता हुआ शिकारी | ||
पंक्ति 245: | पंक्ति 245: | ||
वह सज्जन विद्वान | वह सज्जन विद्वान | ||
सुन रहा है | सुन रहा है | ||
− | + | शान्त गड़गड़ाहट | |
तुम्हारे गीतों की | तुम्हारे गीतों की | ||
तुम गाते हो इसीलिए | तुम गाते हो इसीलिए | ||
जानते हैं वे सब | जानते हैं वे सब | ||
− | कि समुद्र | + | कि समुद्र ज़िन्दा है |
− | + | औ’ गाता है वह | |
मेरे दोस्त | मेरे दोस्त | ||
वे जानते हैं कि | वे जानते हैं कि | ||
− | + | स्वतन्त्र है समुद्र | |
विशाल और चौड़ा है, फूलों से भरा है | विशाल और चौड़ा है, फूलों से भरा है | ||
तुम्हारी आवाज़ की तरह | तुम्हारी आवाज़ की तरह | ||
सूरज हमारा है, धरती हमारी होगी | सूरज हमारा है, धरती हमारी होगी | ||
− | ओ सागर के | + | ओ सागर के प्रकाशस्तम्भ ! |
तुम गाते रहोगे लगातार । | तुम गाते रहोगे लगातार । | ||
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[अनिल जनविजय]]''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[अनिल जनविजय]]''' | ||
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00:08, 29 जून 2019 के समय का अवतरण
एक बार
वह नहीं था
पर उसकी आवाज़ थी
प्रतीक्षा करती हुई
अन्धेरे से हुई अलग रोशनी
रात से अलग हुआ दिन
और धरती आदिम जल से
और
पॉल रॉब्सन की आवाज़
चुप्पी से अलग हुई थी
हमें जकड़ने के लिए
जब बढ़ रहा था अन्धेरा
धरती के भीतर बढ़ रही थीं जड़ें
अन्धे पेड़ लटक रहे थे
रोशनी के लिए
सूरज थर्रा उठा था
जल गूँगा हो गया था
और जानवर
धीरे-धीरे बदल रहे थे अपना आकार
धीरे-धीरे बना रहे थे स्वयँ को वे
जल और वायु के अनुकूल
तभी से
तुम हमेशा आवाज़ रहे मनुष्य की
आकार लेती धरती का गीत रहे
प्रकृति की गति रहे और नदी का सँगीत रहे
तुम्हारे दिल पर
झरनों ने फेंकी
अपनी अन्तहीन गड़गड़ाहट
जैसे किसी चट्टान पर गिरी कोई नदी
और चट्टान गा उठी
सब मूक लोगों की सँगठित आवाज़ में
तुम्हारी आवाज़ ने
रोशनी दिखाई
सब चीज़ों, सब लोगों के रक्त को
और धरती व आकाश
अग्नि औ’ अन्धेरा औ’ पानी
जाग उठे सब तुम्हारे गीतों से
पर बाद में
फिर अन्धेरा छा गया आकाश पर
निकली हरी लपट
भय, युद्ध, पीड़ा और कष्टों से
अग्नि गुलाब की
छा गई भयानक धूल
नगरों के ऊपर
राख बधित लोगों की
जो भट्टियों में चले गए
अपने माथे पर नम्बर चिपकाए
केश रहित
स्त्री-पुरुष, जवान औ’ बूढ़े
इकट्ठे हुए
पोलैण्ड, उक्रअईना, अम्सटर्डम और प्राग में
दोबारा
उदास हो गए नगर
और छा गई ख़ामोशी विशाल
एक जीवित हृदय पर
गुम्बद के पत्थर की तरह सख़्त
निर्जीव हाथ छा जाए जैसे
बच्चे की आवाज़ पर
तब
पॉल रॉब्सन
तुमने गाए गीत
और पुनः इस धरती पर
सुनी गई
अग्निशमन के रूप में
जल की वह प्रभावशाली आवाज़
हमें याद करा रही थी
शानदार, शान्त, अनगढ़ और निश्छल
धरती की आवाज़
कि हम अब भी आदमी हैं
बाँटते हैं आपस में
आशाएँ और दुख अपने
तुम्हारी आवाज़
अलग कर रही थी हमें
अपराध से
एक बार फिर रोशनी
अलग हुई थी अन्धेरे से
अबकी बार
गिरी उदासी
हिरोशिमा पर
भरपूर ख़ामोशी
शेष नहीं बचा कुछ भी
नहीं बची एक भी चिड़िया
ख़ाली किसी खिड़की पर गा सके जो
बिलखते अपने बच्चे के साथ
नहीं बची एक भी माँ
एक भी कारख़ाने का कोलाहल नहीं रहा
शेष नहीं रही मरती वायलिन की चीख़
कुछ भी तो नहीं रहा
आकाश से गिरी मौत की ख़ामोशी जब
और फिर
मनुष्य की आवाज़ के
पुनरुत्थान के लिए
गहरे कहीं गूँजती आशाओं के लिए
पिता औ’ भाई पॉल
तुमने गाए गीत
फिर
तुम्हारे हृदय की नदी
चौड़ी और गहरी थी अधिक
उस ख़ामोशी से
यह सराहना कम होगी
यदि कहूँ तुम्हें मैं बादशाह
सिर्फ़ नीग्रो आवाज़ का
सिर्फ़ अपनी जाति में कहूँ तुम्हें महान
अपने सँगीत की ख़ूबसूरत धुनों के बीच
यद्यपि तुमने गाए गीत
केवल उन काले बच्चों के बारे में
जिन्हें हथकड़ी पहनाई थी
उनके क्रूर मालिकों ने
नहीं,
पॉल रॉब्सन
तुम गाते थे लिंकन के साथ
न केवल काले लोगों के लिए
न केवल दीन-हीन नीग्रो लोगों के लिए
तुम गाते थे
ग़रीबों के लिए
गोरे लोगों के लिए
आदिवासियों के लिए भी
सब लोगों के लिए
तुमने घेरा आकाश अपनी पवित्र आवाज़ से
ख़ामोश नहीं रहे तुम
पॉल रॉब्सन
फेंक दिया गया था जब
गली में
पैड्रो और जुआन को
सब साज-ओ-सामान के साथ
बरसती बारिश में
या जब
चिली में
उपजा गेहूँ
ज्वालामुखी की भूमि पर
और अग्नि में भस्म हुई
सतयुगी धर्मान्धता
शिकारी था उत्तेजित और अविश्वासी
तब तुम रुके नहीं, गाते रहे सदा ही
आदमी
जब भी गिरा
तुमने
उसे ऊपर उठाया
बने तुम नदी कभी भूमिगत
औ’ कभी तुमने भेदा
गहन अन्धेरे में झलकते प्रकाश को
तुम
मरते हुए सम्मान की
अन्तिम तलवार थे
ज़ख़्मी प्रकाश के अन्तिम काँटे थे तुम
सदा बनी रहने वाली गड़गड़ाहट थे
तुम पॉल रॉब्सन
रक्षक थे आदमी की रोटी के
सम्मान थे
सँघर्ष थे
आशा थे
प्रकाश थे मनुष्य के लिए
सूरज के बेटे तुम
हमारे लिए सूरज थे
अमरीकी उपनगरों के सूरज तुम
सूरज थे एण्डेस की लाल बर्फ़ के
तुम हमारी रोशनी के प्रहरी थे
गाओ
कॉमरेड गाओ
धरती के भाई ! तुम गाओ
अग्नि के अच्छे पिता !
हम सबके लिए गाओ
उन सबके लिए गाओ
जो मछलियाँ पकड़ते हैं
या ठोंकते हैं कीलें अपने हथौड़ों से
कातते हैं रेशम के कठोर धागे
या कूटते हैं काग़ज़ की लुगदी
छापते हैं जो मशीनों पर रात-दिन
उन न सोने वाले लोगों के लिए गाओ
जो जागते हैं क़ैद में
आधी-आधी रात तक
परेशान हैं, दुखी हैं
पिस रहे हैं दोहरे अत्याचार में
और जो खड़े हैं भट्टी के सामने
पिघलते ताम्बे के लिए
गलते लोहे के लिए
बारह हज़ार फ़ीट ऊपर
एण्डेस के बँजर अकेलपन में
गाओ
मेरे दोस्त
सदा गाते रहो तुम
तुम
जिसने तोड़ी
मूक नदियों की ख़ामोशी
जब उनमें बह रहा था रक्त
जिसमें से गूँजी थी आवाज़ तुम्हारी
गाओ
कि आवाज़ तुम्हारी
लाती है
उन सबको एक जगह साथ
जो नहीं जानते एक-दूसरे को
थोड़ा भी आपस में
अब
दूर उराल में
पैण्टागन की खोई हुई बर्फ़ पर
तुम गा रहे हो
अन्धेरे के पार
दूर बहुत दूर
और समुद्र
बँजर भूमि
भट्टी झोंकने वाला वह युवक
घूमता हुआ शिकारी
और गिटार बजाता वह अकेला काउब्वॉय
सब तुम्हें सुन रहे हैं
और तुम्हें सुन रहा है
वेनेजुएला की उस उपेक्षित क़ैद में
जीसस फ़ारिया
वह सज्जन विद्वान
सुन रहा है
शान्त गड़गड़ाहट
तुम्हारे गीतों की
तुम गाते हो इसीलिए
जानते हैं वे सब
कि समुद्र ज़िन्दा है
औ’ गाता है वह
मेरे दोस्त
वे जानते हैं कि
स्वतन्त्र है समुद्र
विशाल और चौड़ा है, फूलों से भरा है
तुम्हारी आवाज़ की तरह
सूरज हमारा है, धरती हमारी होगी
ओ सागर के प्रकाशस्तम्भ !
तुम गाते रहोगे लगातार ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय