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− | * [[ | + | * [[हर हुनर हासिल किया दिल में उतरने के सिवा / रवि सिन्हा]] |
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12:54, 6 जुलाई 2019 का अवतरण
रवि सिन्हा
जन्म | 1952 |
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जन्म स्थान | सिवान, बिहार, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
पूंजी का वैश्वीकरण (1997), क्वेण्टम के सौ साल | |
विविध | |
’न्यू सोशलिस्ट इनिश्येटिव’ संस्था के सक्रिय सदस्य। ’संधान’ पत्रिका के एक संस्थापक। भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं और भारत में वामपन्थ की चुनौतियों सम्बन्धी मार्क्सवादी अवधारणा के विषय पर अनेक निबन्धों के लेखक। विज्ञान के दर्शन और इतिहास पर अनेक निबन्धों के लेखक। | |
जीवन परिचय | |
रवि सिन्हा / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि ग़ज़लें
- अब लकीरों की तसव्वुर से ठना करती है / रवि सिन्हा
- आइने पे इताब कौन करे / रवि सिन्हा
- आज़माया है समन्दर ने यहाँ आने तक / रवि सिन्हा
- आप का आधा-सा कुछ वादा रहा / रवि सिन्हा
- आलमे-नासूत की आधी हक़ीक़त जान कर / रवि सिन्हा
- इस भीड़ में वो याद पुरानी भी कहीं है / रवि सिन्हा
- उनकी आँखों में दिखे है जो इशारा कोई / रवि सिन्हा
- एक पत्ता कहीं हिला होता / रवि सिन्हा
- ख़ला की बून्द थी, फैली तो कायनात हुई / रवि सिन्हा
- ख़िरद को ख़्वाब दिखाओ के कायनात चले / रवि सिन्हा
- ग़ैब होगा सुराग़ भी होगा / रवि सिन्हा
- ज़िन्दगी है तो कुछ सुकूँ भी हो, और कुछ इज़्तिराब भी होवे / रवि सिन्हा
- जो दिल में हौसला होता तो ये अंजाम ना होता / रवि सिन्हा
- तिश्नगी धूप है, उजाला है / रवि सिन्हा
- थोड़ी वज़ाहतें भी तो हस्ती में डाल दूँ / रवि सिन्हा
- दरिया वहीं बहता रहा मेरे तुम्हारे बाद / रवि सिन्हा
- दिल गया इज़्तिराब बाक़ी है / रवि सिन्हा
- दुनिया समझ से बाहर मसले नहीं पकड़ में / रवि सिन्हा
- पैदा हुए थे आतिशे-कुन के शरार में / रवि सिन्हा
- बातों-बातों में बात कर आए / रवि सिन्हा
- बेआबरू जिस दर से निकाले हुए हैं हम / रवि सिन्हा
- बे-थाह समन्दर में सतह ढूँढ रहा हूँ / रवि सिन्हा
- यादों में यादों का एक शहर छूटा / रवि सिन्हा
- यादों में ही आएँ उन्हें आने को कहूँगा / रवि सिन्हा
- ये ज़ब्त तो देखो के ज़ुबाँ कुछ ना कहे है / रवि सिन्हा
- ये तसव्वुर मिरे होने की निशानी की तरह / रवि सिन्हा
- ये फ़ैसला मेरा न था जो इस तरफ़ आना हुआ / रवि सिन्हा
- रात अटकी है क़मर देखने वाले न गए / रवि सिन्हा
- वक़्त को मुख़्तलिफ़ रफ़्तार से चला लेंगें / रवि सिन्हा
- शाइस्तगी को बीच की दीवार करोगे / रवि सिन्हा
- शाम उतरी है जगाओ पीरे-उम्रे-दराज़ को / रवि सिन्हा
- हम हक़ीक़त ही रहे आप मगर ख़्वाब हुए / रवि सिन्हा
- हर हुनर हासिल किया दिल में उतरने के सिवा / रवि सिन्हा
- हाफ़िज़ा-ए-ज़िन्दगी है ज़िन्दगी से पेशतर / रवि सिन्हा