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"सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा / विनय मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
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इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
जीवन से  
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जीवन से  
पत्तियों की तरह झर रही हैं  
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पत्तियों की तरह झर रही हैं  
और चढ़ती हुई रात  
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और चढ़ती हुई रात  
ऊंँचे स्वर में
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ऊंँचे स्वर में
दिन का मरसिया पढ़ रही है
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दिन का मरसिया पढ़ रही है
सोचता हूंँ
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सोचता हूंँ
हौसलों के बल पर
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हौसलों के बल पर
अंँधेरे के ख़िलाफ़
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अंँधेरे के ख़िलाफ़
जागते रहने से  
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जागते रहने से  
कुछ तो वक़्त गुजरेगा  
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कुछ तो वक़्त गुजरेगा  
यह अलग बात है
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यह अलग बात है
  कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
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कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
  सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा
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सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा
 
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23:21, 6 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
जीवन से
पत्तियों की तरह झर रही हैं
और चढ़ती हुई रात
ऊंँचे स्वर में
दिन का मरसिया पढ़ रही है
सोचता हूंँ
हौसलों के बल पर
अंँधेरे के ख़िलाफ़
जागते रहने से
कुछ तो वक़्त गुजरेगा
यह अलग बात है
कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा