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"सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा / विनय मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कुछ तो वक़्त गुजरेगा | |
− | + | यह अलग बात है | |
− | + | कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ | |
− | + | सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा | |
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23:21, 6 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
इस मौसम में जहांँ खुशियांँ
जीवन से
पत्तियों की तरह झर रही हैं
और चढ़ती हुई रात
ऊंँचे स्वर में
दिन का मरसिया पढ़ रही है
सोचता हूंँ
हौसलों के बल पर
अंँधेरे के ख़िलाफ़
जागते रहने से
कुछ तो वक़्त गुजरेगा
यह अलग बात है
कि जोर चाहे जितना लगा लूंँ
सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा