भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फ़ासले बढ़ जाएँगे लोगो दिलों के दरमियाँ / कृष्ण 'कुमार' प्रजापति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण 'कुमार' प्रजापति |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:42, 8 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

फ़ासले बढ़ जाएँगे लोगो दिलों के दरमियाँ
मज़हबी झगड़े न डालो दोस्तों के दरमियाँ

ज़िन्दगी की जंग में होना अगर है कामयाब
बुज़दिली आने न पाए हौसलों के दरमियाँ

आदमी ने आदमीयत छोड़ दी है आजकल
जानवर सहमे हुए हैं जंगलों के दरमियाँ

दोस्ताना राज करने का इरादा है अगर
दोस्ती अपनी बढ़ाओ दुश्मनों के दरमियाँ

रह के लोगों में कोई ख़ामी छुपी रहती नहीं
एब हो जाता है ज़ाहिर आइनों के दरमियाँ

आपकी संजीदगी को क्या हुआ आलमपनाह
आप तो रहने लगे हैं मसखरों के दरमियाँ

गर सितारों से भी आगे तुमको जाना है “कुमार “
रास्ता कोई निकालो मुश्किलों के दरमियाँ