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"अनारकली, जॉब कार्ड और सूरजकली / शोभनाथ शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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कई-कई दिन
 
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सोच में डूबी अनारकली
 
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भाग्य को कोसती है
 
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अपनी माँ पर खीझती है  
 
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चलते-चलते आँखों में
 
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आ जाती है बेटी सूरजकली.....
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फुदकती आ रही होगी  
 
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स्कूल से
 
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पर पढ़ाई से कभी
 
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मुँह नहीं मोड़ती है
 
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सूरजकली..........
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इसी पर तो जी रही है
 
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अपने सपने को पलता  
 
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चौथी क्लास में
 
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उसका पोर-पोर  
 
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और गाल टमाटर सा  
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चिपक जाती हैं
 
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यह देख
 
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अपने किये पर
 
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खीझती है अनारकली..............
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अपना बाल दोनों हाथों  
 
अपना बाल दोनों हाथों  
 
नोचती है
 
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एक छोटी सी माँग
 
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बेटी की कहाँ  
 
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पूरा कर पाती है
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पूरा कर पाती है, अनारकली.
सन्न............एक दम सन्न
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सन्न....एक दम सन्न
 
खड़ी रहती है सूरजकली
 
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समझना चाहती है
 
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आखिर क्यों.........?
 
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कैसे बताये उसे
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पिता का साया
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तब से कितने ज़ुल्म
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कई-कई बार मथ डाला है
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उसके शरीर को
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कभी जेठ ने
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तो कभी ससुर ने.......
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फिर भी इस जु़ल्म को
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डर-डर कर सहती रही
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घर से बेदख़ल होने से
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हमेशा बचती रही......।
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जब बगावत कर निकली घर से
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ज़ाँब कार्ड के सहारे
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अपने पैरां पर खड़े होने की
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आस लिए........।
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क्या पता था
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सरकारी जाल में फँसना
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कितना भारी पड़ता है
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हफ्तों-हफ्तों बाद
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कहीं एक दिन काम मिलता है........।।
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शायद इसी तरह हर गरीब का
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सपना मरता है।
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सोचते-सोचते
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अचानक वह बेहोश सी
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ज़मीन पर गिरती है
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आँखें
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खुलती हैं तो
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देखती है
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अपने हाथों से
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माँ के आँसू
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पोंछ रही होती है सूरजकली........।
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माँ की हालत देख
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अपराध-बोध की
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पीड़ा लिये
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गिड़गिड़ाती है
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"माँ मुझे
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खाने से पहले
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हाथ नहीं धोना है साबुन से
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मैं
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खाने से पहले
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हाथ धो लूँगी
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रगड़-रगड़ कर माटी से
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पानी से.........।।
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पर मुझे स्कूल जाना है
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स्कूल जाना है....
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स्कूल जाना है....
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स्कूल जाss नाss हय....
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कहते-कहते
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सिसकियाँ भरने लगती
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है सूरजकली........।।
 
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18:23, 8 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

कई-कई दिन
लौटी है अनारकली............
जॉब कार्ड
दिखाकर
काम की तलाश में भटकी है
आज-कल के चक्कर में
अधिकारियों की बातों में
हफ्तों से अटकी है अनारकली..
खाली हाथ/घर लौटती
सोच में डूबी अनारकली
भाग्य को कोसती है
अपनी माँ पर खीझती है
आख़िरकार क्यों नहीं रखा
उसका नाम करमजली..........
सोचती जाती है
चलते-चलते आँखों में
आ जाती है बेटी सूरजकली......
फुदकती आ रही होगी
स्कूल से
हजार नखड़े उठाने
पड़ते हैं उसके
कभी ये, कभी वो
चाहिए तो चाहिए ही
पर पढ़ाई से कभी
मुँह नहीं मोड़ती है
सूरजकली...........
इसी पर तो जी रही है
अपने सपने को पलता
देख रही है अनारकली.......

चौथी क्लास में
पढ़ती सूरजकली
स्कूल से घर आती है
खाना खाने के पहले हाथ धोने के लिए जब साबुन माँगती है
सुनते ही क्या हो जाता है
माँ को
कि उसका थप्पड़
कुछ इस तरह पड़ता है
झनझना उठता है
उसका पोर-पोर
और गाल टमाटर-सा
लाल हो जाता है.........
उँगुलियाँ माँ की
चिपक जाती हैं
उसके चेहरे पर
यह देख
अपने किये पर
खीझती है अनारकली...............
अपना बाल दोनों हाथों
नोचती है
एक छोटी सी माँग
बेटी की कहाँ
पूरा कर पाती है, अनारकली.

सन्न....एक दम सन्न
खड़ी रहती है सूरजकली
समझना चाहती है
अपने कसूर को
वह तो जानती/सुनती है
इस बात को रोज-रोज
खाने से पहले
हर बच्चा साबुन से हाथ धोता.......,
फिर माँ
आखिर क्यों.........?
इत्ती छोटी बात
नहीं समझती है.....

माँ
कैसे बताये उसे
बेटी के सर से
जब से उठा है
पिता का साया
तब से कितने ज़ुल्म
सहे हैं उसने
अपनों व गैरों के
कई-कई बार मथ डाला है
उसके शरीर को
कभी जेठ ने
तो कभी ससुर ने.......
फिर भी इस जु़ल्म को
डर-डर कर सहती रही
घर से बेदख़ल होने से
हमेशा बचती रही......।
जब बगावत कर निकली घर से
ज़ाँब कार्ड के सहारे
अपने पैरां पर खड़े होने की
आस लिए........।
क्या पता था
सरकारी जाल में फँसना
कितना भारी पड़ता है
हफ्तों-हफ्तों बाद
कहीं एक दिन काम मिलता है........।।
शायद इसी तरह हर गरीब का
सपना मरता है।

सोचते-सोचते
अचानक वह बेहोश सी
ज़मीन पर गिरती है
आँखें
खुलती हैं तो
देखती है
अपने हाथों से
माँ के आँसू
पोंछ रही होती है सूरजकली........।
माँ की हालत देख
अपराध-बोध की
पीड़ा लिये
गिड़गिड़ाती है
"माँ मुझे
खाने से पहले
हाथ नहीं धोना है साबुन से
मैं
खाने से पहले
हाथ धो लूँगी
रगड़-रगड़ कर माटी से
पानी से.........।।
पर मुझे स्कूल जाना है
स्कूल जाना है....
स्कूल जाना है....
स्कूल जाss नाss हय....
कहते-कहते
सिसकियाँ भरने लगती
है सूरजकली........।।