"लैटरबॉक्स / विनोद विट्ठल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद विट्ठल |अनुवादक= |संग्रह=पृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
के०एफ़०सी० और मैक-डी का अतिक्रमण कोई नहीं हटा सकता | के०एफ़०सी० और मैक-डी का अतिक्रमण कोई नहीं हटा सकता | ||
− | सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के चलते काटे गए बरगदों की तरह तुम भी ग़ायब हुए हो | + | सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के चलते काटे गए बरगदों की तरह |
+ | तुम भी ग़ायब हुए हो | ||
और तुम्हारे लिए कोई नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल चिन्ता नहीं कर रहा है | और तुम्हारे लिए कोई नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल चिन्ता नहीं कर रहा है | ||
− | कैमलिन पेन और एम्बेसेडर कार की तरह कोई शिकायत नहीं थी तुम्हारे इस्तेमाल से | + | कैमलिन पेन और एम्बेसेडर कार की तरह |
− | अकेले, डरे हुए, सब-कुछ उलींच देना चाहने वाले हर गुमनाम का भरोसा तुम पर था | + | कोई शिकायत नहीं थी तुम्हारे इस्तेमाल से |
+ | अकेले, डरे हुए, सब-कुछ उलींच देना चाहने वाले | ||
+ | हर गुमनाम का भरोसा तुम पर था | ||
एक दुनिया को दूसरी दुनिया के साथ खोलते थे तुम | एक दुनिया को दूसरी दुनिया के साथ खोलते थे तुम | ||
लेकिन कभी नहीं पढ़ पाए ये दुनिया | लेकिन कभी नहीं पढ़ पाए ये दुनिया |
02:04, 9 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
अल्लाउद्दीन खि़लज़ी के बनाए हौज़ख़ास की दीवारों पर खुरचकर
लिखे गए एक कूट नाम की तरह अदेखे
पिता के बरसों से अचुम्बित गालों की तरह वीरान
पुराने और प्रिय इँक पेन के टूटे निब की तरह अकेले
ओछी हो गई बेलबॉटम की तरह अप्रचलित
तस्वीर में बदल गई बम्बईवाली मौसी की तरह अनुपस्थित
तुम कहाँ हो लैटरबॉक्स ?
any letter box nearby लिखने के बाद भी
तुम्हें ढूँढ़ नहीं पा रहे हैं इक्कीसवीं सदी के तमाम सर्च इँजन
जो तस्वीर और क्लिप के साथ मोबाइल नम्बर तक तुरन्त दे देते हैं
निकटतम उपलब्ध कॉल गर्ल तक का
किसी भी स्टेशन से निकलते ही सबसे पहले तुम दिखते थे हाथ हिलाते हुए
ICICI के ए०टी०एम० और COKE के डिस्पेंसर ने तुम्हें बेदखल कर दिया है
के०एफ़०सी० और मैक-डी का अतिक्रमण कोई नहीं हटा सकता
सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के चलते काटे गए बरगदों की तरह
तुम भी ग़ायब हुए हो
और तुम्हारे लिए कोई नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल चिन्ता नहीं कर रहा है
कैमलिन पेन और एम्बेसेडर कार की तरह
कोई शिकायत नहीं थी तुम्हारे इस्तेमाल से
अकेले, डरे हुए, सब-कुछ उलींच देना चाहने वाले
हर गुमनाम का भरोसा तुम पर था
एक दुनिया को दूसरी दुनिया के साथ खोलते थे तुम
लेकिन कभी नहीं पढ़ पाए ये दुनिया
जो लिखना नहीं चाहती
जो बिना धैर्य के सेण्ड कर रही है सबकुछ
जिसे पोस्टकार्ड की साफ़गोई से डर लगता है
जिसके पास कुछ भी अपना नहीं है लिफ़ाफ़े में डालने लायक़
किसी भाषा की तरह गुम हो रहे तुम केवल एक बार दिख जाओ सड़क पर
कि दिखा सकूँ दौर को भरोसे की शक़्ल और रास्ता
जिससे आएगी बेहतर दुनिया की चिट्ठी !
हर समय, सबके लिए उपलब्ध रहने की तुम्हारी ज़िद ने
तुम्हें लाल रँग दिया
और इसीलिए मुझे तुमसे और लाल रँग से प्यार हुआ !
कितनी उड़ानें बचाई कबूतरों की
हज़ारों मील बचाए हरकारों के
किसी से नहीं पूछी जाति-धर्म-नागरिकता
फिर भी तुम्हारी डी०पी० कोई क्यों नहीं बना रहा है ?
किसी भी देश के झण्डे में तुम क्यों नहीं हो ?
शेरों से ज़्यादा ज़रूरी है तुम्हें बचाया जाना,
बुदबुदाते हुए एक कवि सुबक रहा है
जिसे कोई नहीं सुन रहा है !
दर्ज करो इसे
कि अलीबाबा को बचा लेंगे जैकमा और माइक्रोसॉफ़्ट को बिल गेट्स
राम को अमित शाह और बाबर को असदुद्दीन ओवैसी
किलों को राजपूत और खेतों को जाट
टिम कुक बचा लेंगे एप्पल को जैसे जुकरबर्ग फ़ेसबुक को
तुम खु़द उगो जँगली घास की तरह इटेलियन टाइलें तोड़कर
और लहराओ जेठ की लू में लहराती है लाल ओढ़नी जैसे !