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"हम पाहुने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | पढ़ो सन्देसा। | ||
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+ | पहचान न पाया | ||
+ | गूँजा था वन। | ||
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+ | अनुरागी आखर | ||
+ | खुली हथेली। | ||
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+ | था दर्द किसी | ||
+ | भीगे नैन बावरे | ||
+ | दुत्कार मिली। | ||
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+ | भरी भीड़ है | ||
+ | रक्त-पिपासु दिखे, | ||
+ | भोले चेहरे। | ||
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+ | बूँद टपकी | ||
+ | नभ या नयन से | ||
+ | किसने जाना ! | ||
+ | 64 | ||
+ | दिन डूबा है | ||
+ | बन्द कर लो द्वार | ||
+ | बिदा दो अब ! | ||
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+ | '''हम पाहुने''' | ||
+ | कुछ दिन के ही थे | ||
+ | चलना होगा ! | ||
+ | 66 | ||
+ | टूटे हैं रोज़ | ||
+ | जुड़ने में निकली | ||
+ | पूरी ज़िन्दगी। | ||
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08:47, 11 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
57
भोर में भानु
पुर्जे -पुर्जे करता,
लिखी जो पातीं।
58
तुम जोड़ना
टूटे हुए आखर
पढ़ो सन्देसा।
59
चीख थी मेरी
पहचान न पाया
गूँजा था वन।
60
लिखो आग से
अनुरागी आखर
खुली हथेली।
61
था दर्द किसी
भीगे नैन बावरे
दुत्कार मिली।
62
भरी भीड़ है
रक्त-पिपासु दिखे,
भोले चेहरे।
63
बूँद टपकी
नभ या नयन से
किसने जाना !
64
दिन डूबा है
बन्द कर लो द्वार
बिदा दो अब !
65
हम पाहुने
कुछ दिन के ही थे
चलना होगा !
66
टूटे हैं रोज़
जुड़ने में निकली
पूरी ज़िन्दगी।