ओ आमार उठोनेर '''रजनीगंधा,'''
शोनो
शेखाबे की आमाके अंधकारे
हासार कौशल?
आर हे प्रिये! सादा फूलेर द्वारा
अथवा कर्मयोगिनी मौन।
('''अनुवादक हिंदी से बंगाली देवनागरी डॉ .भीखी प्रसाद 'वीरेंद्र' सिलीगुड़ी) ও আমার উঠলে রজনী গন্ধা ,শোনো শেখাবে কি আমাকে অঁন্ধকারে,হাসার কৌশল? আর হে প্রিয়ে! সাদা ফুলের দ্বারা রাএির কালো বইয়ে করো তুমি সশস্ত্র হস্তাক্ষর প্রেম না কর্ম কী তোমার বার্তা ?জানাবে আমায় কর্ম যোগী অথবা রাতজাগা প্রেমী কে তুমি? প্রিয়ের প্রেয়সী অথবা কর্ম যোগিনী মৌন।(देवनागरी से बंगाली लिप्यन्तरण डॉ संजय 'कर्ण' , एच ए आर सी, देहरादून, उत्तराखण्ड)'
'''मूल कविता *[[कर्मयोगिनी मौन / कविता भट्ट]]'''
रजनीगंधा
ओ मेरे आँगन की
सुनो तो तुम !
सिखाओगी क्या मुझे
अंधकार में
मुस्काने का कौशल ?
और हाँ ,प्रिया!
श्वेत पुष्पों से तुम
काले पृष्ठों पर
रात की पुस्तक के
किया करती
सशक्त हस्ताक्षर
प्रेम या कर्म
क्या तुम्हारा संदेश
मुझे बताना !
कर्मयोगी या फिर
प्रेमी जागते
रातों को अकेले ही
हो तुम कौन
प्रेयसी प्रिय की या
कर्मयोगिनी मौन ।
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