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सारनाथ सँ घुरैत बुद्ध
जखन पार कयलनि गंगा
आ पहुँचलाह ओहि पार
तँ बाजल निषाद-
बोधगया केँ आब किछुओ बोध नहि
गया मे गयासुर
मगध मे अजातशत्रु
सब ठाम सबहक
संदेहे शत्रु
रोध मे चाहे ‘वि’ होइ
अथवा ‘अनु’ उपसर्ग
भंते,
सत्य इएह कि
बोधगया केँ आब किछुओ बोध नहि