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"होम्यो कविता : लीडमपाल / मनोज झा" के अवतरणों में अंतर

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होम्यो कविता: लीडमपाल
ऊपर को बढ़ता है गठिया,
खोंचा मारे रहे गरम।
ठंढ़े प्रयोग से दर्द घटे
तो सोचो मत दे दो लीडम॥
देह समूचा ठंढ़ा रहता
बिस्तर की गरमी हो न सहन।
कील गड़े या बर्रे काटे
सोचो मत दे दो लीडम॥
चोट लगी और दाग पड़ गया,
झाग सहित हो रक्त वमन।
तलवों में खुजलाहट हो तो
सोचो मत दे दो लीडम॥