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बाल झबरे, दृष्टि पैनी,  
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बाल झबरे, दृष्टि पैनी, फटी लुंगी नग्न तन
फटी लुँगी नग्न तन
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किन्तु अन्तर्दीप्‍त था आकाश-सा उन्मुक्त मन
किन्तु अन्तर दीप्त था,
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उसे मरने दिया हमने, रह गया घुटकर पवन
आकाश-सा उन्मुक्त मन
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अब भले ही याद में करते रहें सौ-सौ हवन ।
 
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उसे मरने दिया हमने,  
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क्षीणबल गजराज अवहेलि‍त रहा जग-भार बन
रह गया घुटकर पवन
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छाँह तक से सहमते थे शृंगालों के प्राण-मन
अब भले ही याद में,
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नहीं अंगीकार था तप-तेज को नकली नमन
करते रहो सौ-सौ नमन
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कर दिया है रोग ने क्या खूब भव-बाधा शमन !
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राख को दूषित करेंगे ढोंगियों के अश्रुकण
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अस्थि-शेष-जुलूस का होगा उधर फिल्मीकरण
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शादा के वक्ष पर खुर-से पड़े लक्ष्मी-चरण
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शंखध्वनि में स्मारकों के द्रव्य का है अपहरण !
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रहे तन्द्रा में निमीलित इन्द्र के सौ-सौ नयन
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करें शासन के महाप्रभु क्षीरसागर में शयन
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राजनीतिक अकड़ में जड़ ही रहा संसद-भवन
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नेहरू को क्या हुआ,  मुख से न फूटा वचन ?
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क्षेपकों की बाढ़ आई, रो रहे हैं रत्न कण
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देह बाकी नहीं है तो प्राण में होंगे न व्रण ?
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तिमिर में रवि खो गया, दिन लुप्त है, बेसुध गगन
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भारती सिर पीटती है, लुट गया है प्राणधन !
 
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03:06, 24 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

बाल झबरे, दृष्टि पैनी, फटी लुंगी नग्न तन
किन्तु अन्तर्दीप्‍त था आकाश-सा उन्मुक्त मन
उसे मरने दिया हमने, रह गया घुटकर पवन
अब भले ही याद में करते रहें सौ-सौ हवन ।
 
क्षीणबल गजराज अवहेलि‍त रहा जग-भार बन
छाँह तक से सहमते थे शृंगालों के प्राण-मन
नहीं अंगीकार था तप-तेज को नकली नमन
कर दिया है रोग ने क्या खूब भव-बाधा शमन !
 
राख को दूषित करेंगे ढोंगियों के अश्रुकण
अस्थि-शेष-जुलूस का होगा उधर फिल्मीकरण
शादा के वक्ष पर खुर-से पड़े लक्ष्मी-चरण
शंखध्वनि में स्मारकों के द्रव्य का है अपहरण !
 
रहे तन्द्रा में निमीलित इन्द्र के सौ-सौ नयन
करें शासन के महाप्रभु क्षीरसागर में शयन
राजनीतिक अकड़ में जड़ ही रहा संसद-भवन
नेहरू को क्या हुआ, मुख से न फूटा वचन ?
 
क्षेपकों की बाढ़ आई, रो रहे हैं रत्न कण
देह बाकी नहीं है तो प्राण में होंगे न व्रण ?
तिमिर में रवि खो गया, दिन लुप्त है, बेसुध गगन
भारती सिर पीटती है, लुट गया है प्राणधन !