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अपने कन्धों पर महसूस करता हूँ | अपने कन्धों पर महसूस करता हूँ | ||
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गहरे घाव की तरह | गहरे घाव की तरह | ||
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मुझे याद है धरती पर बिखरे | मुझे याद है धरती पर बिखरे | ||
सुख-सौन्दर्य के लालच में | सुख-सौन्दर्य के लालच में | ||
− | मैंने ही अपने | + | मैंने ही अपने पँख कतर डाले |
− | + | बान्ध लिया अपने आप को | |
− | मुरझा जाने वाले फूलों की | + | मुरझा जाने वाले फूलों की पँखड़ियों से |
समय के साथ ख़त्म हो जाने वाली | समय के साथ ख़त्म हो जाने वाली | ||
− | + | ख़ुशबू की बेड़ियों से | |
मेरे मन में धरती पर उगने की | मेरे मन में धरती पर उगने की | ||
− | ऐसी | + | ऐसी आकाँक्षा जगी |
कि मैं रोक नहीं सका अपने आप को | कि मैं रोक नहीं सका अपने आप को | ||
उगा तो पर अब उड़ान कहाँ | उगा तो पर अब उड़ान कहाँ |
14:10, 26 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
जब भी मैं आसमान की ओर देखता हूँ
चिड़ियों की उड़ान उदास कर देती है
अपने कन्धों पर महसूस करता हूँ
झड़ गए पँखों के निशान
गहरे घाव की तरह
दर्द उभरता है और निगल जाता है मुझे
नहीं, अब उड़ नहीं सकता मैं
आसमान से धरती को नहीं देख सकता
एक साथ, एक नज़र में
गोते नहीं लगा सकता
सितारों के नीचे, ज़मीन के ऊपर
ख़ुद को समेटकर
चिड़ियों के पीछे नहीं भाग सकता
उनके घोंसलों तक
उनके बच्चों को माँ की तरह
स्पर्श नहीं कर सकता
मुझे याद है धरती पर बिखरे
सुख-सौन्दर्य के लालच में
मैंने ही अपने पँख कतर डाले
बान्ध लिया अपने आप को
मुरझा जाने वाले फूलों की पँखड़ियों से
समय के साथ ख़त्म हो जाने वाली
ख़ुशबू की बेड़ियों से
मेरे मन में धरती पर उगने की
ऐसी आकाँक्षा जगी
कि मैं रोक नहीं सका अपने आप को
उगा तो पर अब उड़ान कहाँ
पेड़ हो गया जबसे
सोचता हूँ उड़ान से लौटकर
चिड़ियों का झुण्ड
मेरी हज़ार बाँहों पर
बैठा करे आपस में बतियाते हुए
मेरी पत्तियों की आड़ में घोंसले बनाए
सो जाए रोज़ सुबह होने तक
ताकि मैं भी थोड़ी देर के लिए ही सही
पेड़ से चिड़िया में बदल सकूँ