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15:46, 6 अगस्त 2019 का अवतरण
इस दुनिया के बारे में
मैंने बहुत कुछ कहा है,
और यह देखकर मैं अचम्भे में हूँ ।
सूरज ने मुझे चुनौती दी है,
हमेशा अपना चोला
बदलती रहती है यह हरी-भरी धरती,
बदलती हैं
जगहें और ध्वनियाँ — चीज़ों की आत्माएँ ।
मैंने बहुत कुछ कहा है,
अपने पड़ोसी की आँखों में झाँककर,
उसका हाथ अपने हाथों में लेकर ।
लेकिन
जो कुछ भी मैंने कहा है
अब तक
वह कुछ नहीं है। निमिष मात्र भी नहीं ।
मैंने सिर्फ़ उतना ही कहा है
जितना यह जानने के लिए काफ़ी है
कि यहाँ और वहाँ
आज और फिर कभी
मैंने अपना गीत पक्षियों के साथ जोड़ा है ।
रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय