भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीवन बस अपना होता है / मानोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} <<<<<=== इस ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
छो |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGeet}} | |
+ | |||
<poem> | <poem> | ||
जीवन बस अपना होता है, | जीवन बस अपना होता है, | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 12: | ||
जब-जब आशा के पौधोँ को | जब-जब आशा के पौधोँ को | ||
− | सींचा | + | सींचा जिस ने बडे जतन से |
फूल खिलेँगे, मोती देँगे, | फूल खिलेँगे, मोती देँगे, | ||
सपना बोया बहुत लगन से, | सपना बोया बहुत लगन से, | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 18: | ||
अधखिलती कलियों को काटा | अधखिलती कलियों को काटा | ||
रँगहीन था रक्त बहा जो | रँगहीन था रक्त बहा जो | ||
− | + | क्या होती परवाह किसी को॥ | |
नई-पुरानी छोटी-छोटी | नई-पुरानी छोटी-छोटी | ||
− | + | आशाओं के बादल जोडे, | |
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा, | कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा, | ||
− | झिलमिल रातें, सपने | + | झिलमिल रातें, सपने तोड़े, |
− | सोचा छू | + | सोचा छू ले पँख लगा कर, |
ऐसी आँधी चली अचानक | ऐसी आँधी चली अचानक | ||
सावन बरसा पर तरसा कर | सावन बरसा पर तरसा कर |
09:28, 26 अगस्त 2019 के समय का अवतरण
जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥
जब-जब आशा के पौधोँ को
सींचा जिस ने बडे जतन से
फूल खिलेँगे, मोती देँगे,
सपना बोया बहुत लगन से,
माली ने निष्ठुरता से यूँ
अधखिलती कलियों को काटा
रँगहीन था रक्त बहा जो
क्या होती परवाह किसी को॥
नई-पुरानी छोटी-छोटी
आशाओं के बादल जोडे,
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
झिलमिल रातें, सपने तोड़े,
सोचा छू ले पँख लगा कर,
ऐसी आँधी चली अचानक
सावन बरसा पर तरसा कर
फिर से प्यासा रखा नदी को॥
हम हैं जो बुनते अनदेखे
सब आशंकाओं के जाले,
हम ही होते शत्रु स्वयं के
अपने से ही चलते चालें,
तेज़ धार में समझबूझ कर
दे देते पतवार नाव की,
गहरे जल के हिचकोलों में
दोषी ठहराते माझी को॥
जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥