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"चुनिंदा शेर / दाग़ देहलवी" के अवतरणों में अंतर

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18:21, 26 अगस्त 2019 के समय का अवतरण

1.
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए।

2.
होशो-हवास ताब-ओ-तबां 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया।

3.
उर्दू है जिसका नाम हमीं जानते हैं 'दाग़'
सारे जहां में धूम हमारी ज़बां की है।

4.
ख़बर सुनकर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से
ख़ुदा बख़्शे बहुत सी खूबियां थीं मरने वाले में।

5.
हज़ारों काम महब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं।