भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खोया हुआ दिमाग़ है वहशत है और तू / प्रणव मिश्र 'तेजस'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:18, 9 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

खोया हुआ दिमाग़ है वहशत है और तू
दुनिया के चन्द लोग हैं ज़ुल्मत है और तू

उजड़े हुये दयार में ख़्वाबों की राख पर
इक बेरहम उमीद की ज़ीनत है और तू

मुझको शबे-फ़िराक़ में अच्छा ही लग रहा
नश्शा है मर्ग ए यास का राहत है और तू

दरिया की प्यास प्यास थी सागर से बुझ गई
लेकिन हमारी प्यास में कुल्फ़त है और तू

शौक़ ए विसाल देख के निकले हैं जिस्म से
जाना नहीं उधर के जिधर छत है और तू