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"ओ मज़दूर-किसानो ! / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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| − | कवि :::   बदल चुका है जग में | + | कवि   | 
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| − | ::  | + | :::    आज ज़माना, मानों !<br> | 
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| + | :::     अपना पथ पहचानो !<br> | ||
| − | बालक:     :  | + | बालक:       | 
| − | + | :::हम हैं सोये भूखे,<br> | |
| − | + | :::खा कुछ टुकड़े सूखे !<br> | |
| − | औरतें         :     स्वाभिमान खंडित | + | |
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| :::       पग - पग अपमानित,<br> | :::       पग - पग अपमानित,<br> | ||
| − | ::  | + | :::   छाया तिमिर घना | 
| − | ::  | + | :::   जीवन भार बना !<br> | 
| − | कवि ::  | + | कवि   | 
| + | :::     अब हुआ नया प्रभात !<br> | ||
| :::  छिन्न अंध - ग्रस्त - रात !<br> | :::  छिन्न अंध - ग्रस्त - रात !<br> | ||
| :::  अब हुआ नया प्रभात !<br> | :::  अब हुआ नया प्रभात !<br> | ||
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| + | :::    यह सरमायादारी ? <BR> | ||
| :::  यह क्रूर ज़मीदारी ? <BR> | :::  यह क्रूर ज़मीदारी ? <BR> | ||
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| :::  धर कर रूप पिशाचिन<BR> | :::  धर कर रूप पिशाचिन<BR> | ||
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| :::  मिटने का उनका क्षण<BR> | :::  मिटने का उनका क्षण<BR> | ||
| :::  आया है आज यहीं !<br> | :::  आया है आज यहीं !<br> | ||
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| :::  जागो, जागो !<br> | :::  जागो, जागो !<br> | ||
| :::  ओ, युग-युग से सोये<BR> | :::  ओ, युग-युग से सोये<BR> | ||
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| :::  जन-जन के अरमानो !<br> | :::  जन-जन के अरमानो !<br> | ||
| :::  ओ, मज़दूर - किसानो !<br> | :::  ओ, मज़दूर - किसानो !<br> | ||
| :::   अपना पथ पहचानो !<br> | :::   अपना पथ पहचानो !<br> | ||
| − | सहगान :  | + | सहगान   | 
| + | :::   हाँ , दूर क्षितिज पर आशा के घन,<br> | ||
| ::: घिरता जाता प्रतिक्षण पूर्ण गगन !<br> | ::: घिरता जाता प्रतिक्षण पूर्ण गगन !<br> | ||
| ::: नव-जीवन का संदेश सनातन<BR> | ::: नव-जीवन का संदेश सनातन<BR> | ||
| ::: गूँज रहा जिससे जग का कण-कण !<br> | ::: गूँज रहा जिससे जग का कण-कण !<br> | ||
| − | कवि ::  | + | कवि   | 
| + | :::लो, बंधन का भार ढहा जाता,<br> | ||
| :::युग मुक्त-नया-संगीत सुनाता !<br> | :::युग मुक्त-नया-संगीत सुनाता !<br> | ||
| − | सहगान: ::हम अभिनव रूप निहार रहे,<br> | + | सहगान | 
| + | :::हम अभिनव रूप निहार रहे,<br> | ||
| :::उजड़ा तन-मन आज सँवार रहे !<br> | :::उजड़ा तन-मन आज सँवार रहे !<br> | ||
| :::हम पहचान चलेंगे अपनापन,<br> | :::हम पहचान चलेंगे अपनापन,<br> | ||
20:18, 18 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
कवि
- ओ, मज़दूर - किसानो !
- अपना पथ पहचानो !
 
- ओ, मज़दूर - किसानो !
 
श्रमजीवी गण:
- हुआ युगों से शोषण,
- जकड़े अगणित बंधन !
 
- हुआ युगों से शोषण,
 
बालक
- अधनंगे हैं निर्धन !
 
- अधनंगे हैं निर्धन !
 
औरतें :
- दुख और अभावों में
- काट रहे हैं जीवन !
 
 
कवि
- बदल चुका है जग में
-     आज ज़माना, मानों !
-     ओ, मज़दूर-किसानो !
-      अपना पथ पहचानो !
 
 
बालक:
- हम हैं सोये भूखे,
- खा कुछ टुकड़े सूखे !
 
- हम हैं सोये भूखे,
 
औरतें
- स्वाभिमान खंडित
-        पग - पग अपमानित,
- छाया तिमिर घना
-    जीवन भार बना !
 
 
कवि
-      अब हुआ नया प्रभात !
-   छिन्न अंध - ग्रस्त - रात !
-   अब हुआ नया प्रभात !
 
-      अब हुआ नया प्रभात !
 
श्रमजीवी
-     यह सरमायादारी ? 
-   यह क्रूर ज़मीदारी ? 
- .....
-   निर्दयी शिकारिन बन
-   धर कर रूप पिशाचिन
 
-     यह सरमायादारी ? 
 
(समवेत)
-      टूटी हम पर !
-   टूटी हम पर !
 
-      टूटी हम पर !
 
कवि
-       अब भय की बात नहीं !
-   मिटने का उनका क्षण
-   आया है आज यहीं !
-   अब भय की बात नहीं !
-   जागो, जागो !
-   ओ, युग-युग से सोये
 
-       अब भय की बात नहीं !
 
-   जन-जन के अरमानो !
-   ओ, मज़दूर - किसानो !
-    अपना पथ पहचानो !
 
-   जन-जन के अरमानो !
 
सहगान
-    हाँ , दूर क्षितिज पर आशा के घन,
-  घिरता जाता प्रतिक्षण पूर्ण गगन !
-  नव-जीवन का संदेश सनातन
-  गूँज रहा जिससे जग का कण-कण !
 
-    हाँ , दूर क्षितिज पर आशा के घन,
 
कवि
- लो, बंधन का भार ढहा जाता,
- युग मुक्त-नया-संगीत सुनाता !
 
- लो, बंधन का भार ढहा जाता,
 
सहगान
- हम अभिनव रूप निहार रहे,
- उजड़ा तन-मन आज सँवार रहे !
- हम पहचान चलेंगे अपनापन,
- कोई बाँध न पाएगा लोचन!
- फूटा स्वर्ण-विहान !
- हम मज़दूर-किसान !
 
- हम अभिनव रूप निहार रहे,
 
 
	
	

