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"निरभ्र नभ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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शैलशृंग चूमते | शैलशृंग चूमते | ||
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दो घूँट मिल जाएँ | दो घूँट मिल जाएँ | ||
तो तपन बुझाएँ । | तो तपन बुझाएँ । | ||
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बरसों था सँभाला | बरसों था सँभाला | ||
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कुछ निपट अंधे, | कुछ निपट अंधे, | ||
अकर्ण साथ बँधे। | अकर्ण साथ बँधे। | ||
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अपनों की भीड़ भी | अपनों की भीड़ भी | ||
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एक तेरा आँचल | एक तेरा आँचल | ||
एकमात्र सम्बल। | एकमात्र सम्बल। | ||
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तोड़ने चले | तोड़ने चले | ||
जीवन के घरौंदे | जीवन के घरौंदे | ||
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पैरों तले रौंदने | पैरों तले रौंदने | ||
खुद ही मिट गए। | खुद ही मिट गए। | ||
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याद यह रखना | याद यह रखना | ||
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तुम लाख रौंदना | तुम लाख रौंदना | ||
फिर उग आएँगे। | फिर उग आएँगे। | ||
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+ | '''नाम था लिखा मेरा''' | ||
+ | '''अग-जग उजेरा। | ||
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22:42, 12 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
36
निरभ्र नभ
शैलशृंग चूमते
प्रतीक्षातुर
दो घूँट मिल जाएँ
तो तपन बुझाएँ ।
37
मोती- सा मन
बरसों था सँभाला
पीस ही डाला
कुछ निपट अंधे,
अकर्ण साथ बँधे।
38
काई -सी छँटी
अपनों की भीड़ भी
छूटा नीड़ भी
एक तेरा आँचल
एकमात्र सम्बल।
39
तोड़ने चले
जीवन के घरौंदे
ज्वार -से उठे
पैरों तले रौंदने
खुद ही मिट गए।
40
चले जाएँगे,
याद यह रखना
अंकुर हम
तुम लाख रौंदना
फिर उग आएँगे।
41
गुलाबी नभ
करतल किसी का
पढ़ा औचक-
नाम था लिखा मेरा
अग-जग उजेरा।