भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रलय / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= टूटती शृंखलाएँ / महेन्द्र भट...)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:01, 19 अगस्त 2008 के समय का अवतरण


उजड़ा पड़ा सारा नगर,
सूनी पड़ी सारी डगर,
चिडियाँ तृषित सहमी खड़ीं,
कुटियाँ सकल टूटी पड़ीं,
छायी अवनि-आकाश में दहशत !

आ सनसनाता है पवन,
क्रोधित प्रखर धधकी जलन,
ज्वाला ग्रसित अगणित सदन,
उर्वर हुआ, सूखा विजन,
दृढ़ उच्च दुख का बन गया पर्वत !

कण-कण गया भू का सिहर,
उर में बही भय की लहर,
हिंसक बढ़े जब घिर अमित,
क्रन्दन, मरण जन-जन दमित,
दुर्बल जगत सारा हुआ आहत !