भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डाकिये का डर / मुहम्मद अल-मग़ूत / विनोद दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुहम्मद अल-मग़ूत |अनुवादक=विनोद द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
दुनिया के सभी खेतों की
+
क़ैदियो ! तुम जहाँ कहीं भी हो
दो नन्हें होंठों से अनबन है
+
अपने सभी डर, अपनी चीख़ें और ऊब को
इतिहास की सभी राहों की
+
मेरे पास रवाना कर दो
दो नन्हें पैरों से अनबन है
+
सभी समुद्री तट के मछुआरों
 +
अपने सभी ख़ाली जालों और समुद्री बीमारियों को
 +
मेरे पास रवाना कर दो
  
वे सफ़र पर रहते हैं
+
हर खेत खलिहान के किसानों
हम घर पर रहते हैं
+
अपने सभी फूलों, चिथड़ों
वे फाँसी के तख़्ते के मालिक हैं
+
कटी-फटी छातियों, चीरे हुए पेटों
हमारे पास गर्दनें हैं
+
और उखाड़े गए नाख़ूनों को
वे मोतियों के मालिक हैं
+
मेरे पते पर यानी कि दुनिया के किसी कैफ़े में भेज दो
हमारे पास मस्से और चकत्ते हैं
+
उनके पास रात, सुबह और दोपहर है
+
हमारे पास चमड़ी और हड्डियाँ हैं
+
  
हम दोपहर की चिलचिलाती धूप में खेत रोपते हैं
+
आदमी की तकलीफ़ों की
वे छाँह में खाना खाते हैं ।
+
मैं एक बड़ी फ़ाइल तैयार कर रहा हूँ
उनके दाँत चावल की तरह सफ़ेद हैं
+
भूखों के होंठों
जँगलियों की तरह हमारे काले हैं,
+
और अभी भी इन्तज़ार कर रही उन पुतलियों के
उनकी छाती रेशम की तरह मुलायम है
+
एक बार दस्तख़त हो जाएँ
फाँसी के चौक की तरह हमारी खुरदरी है,
+
तो मैं उस फ़ाइल को ईश्वर को सौंपूँगा
फिर भी हम दुनिया के बादशाह हैं ।
+
  
उनके घर में ख़ासराज़ वाली तमाम फ़ाइलें जमा हैं
+
हर जगह मौज़ूद
हमारे घर पत्तियों से अटे पड़े हैं ।
+
तुम अभागों के लिए
उनकी जेबों में चोरों और गद्दारों के पते हैं,
+
मुझे, बस, सबसे बड़ा डर यह लगता है
हमारी जेबों में नदियाँ हैं,
+
कि कहीं ईश्वर अनपढ़ न हो
और बादलों की गड़गड़ाहट है
+
 
+
उनके पास खिड़कियाँ हैं
+
हमारे पास हवा है
+
उनके पास पानी के जहाज़ हैं
+
हमारे पास लहरें हैं ।
+
 
+
उनके पास मैडल है
+
हमारे पास धूल है ।
+
उनके पास दीवारें और छज्जे हैं
+
हमारे पास गमछा और कटारें हैं ।
+
 
+
लेकिन, मेरे महबूब ! अब हमें
+
सड़क की पटरी पर सो जाना चाहिए
+
  
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास'''
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास'''
 
'''लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए'''
 
        Muhammad al-Maghut
 
          Shade and Noon Sun
 
 
All the fields of the world
 
At odds with two small lips
 
All the streets of history
 
At odds with two bare feet.
 
 
Love,
 
They travel and we wait
 
They have gallows
 
We have necks
 
They have pearls
 
And we have freckles and moles
 
They own the night, the dawn, the afternoon sun and the day
 
And we own skin and bones.
 
 
We plant under the noonday sun,
 
And they eat in the shade
 
Their teeth are white as rice
 
Our teeth dark as desolate forests,
 
Their breasts are soft as silk
 
Our breasts dusty as execution squares
 
And yet, we are the kings of the world:
 
Their homes are buried in bills and accounts
 
Our homes are buried in autumn leaves
 
In their pockets they carry the addresses
 
of thieves and traitors
 
In ours we carry the addresses
 
of rivers and thunderstorms.
 
They own windows
 
We own the winds
 
They own the ships
 
We own the waves.
 
 
They own the medals
 
We own the mud
 
They own the walls and balconies
 
We own the ropes and the daggers.
 
 
And now beloved !
 
Come, let us sleep on the pavements.
 
 
</poem>
 
</poem>

16:25, 24 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण

क़ैदियो ! तुम जहाँ कहीं भी हो
अपने सभी डर, अपनी चीख़ें और ऊब को
मेरे पास रवाना कर दो
सभी समुद्री तट के मछुआरों
अपने सभी ख़ाली जालों और समुद्री बीमारियों को
मेरे पास रवाना कर दो

हर खेत खलिहान के किसानों
अपने सभी फूलों, चिथड़ों
कटी-फटी छातियों, चीरे हुए पेटों
और उखाड़े गए नाख़ूनों को
मेरे पते पर यानी कि दुनिया के किसी कैफ़े में भेज दो

आदमी की तकलीफ़ों की
मैं एक बड़ी फ़ाइल तैयार कर रहा हूँ
भूखों के होंठों
और अभी भी इन्तज़ार कर रही उन पुतलियों के
एक बार दस्तख़त हो जाएँ
तो मैं उस फ़ाइल को ईश्वर को सौंपूँगा

हर जगह मौज़ूद
तुम अभागों के लिए
मुझे, बस, सबसे बड़ा डर यह लगता है
कि कहीं ईश्वर अनपढ़ न हो

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास