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"डाकिये का डर / मुहम्मद अल-मग़ूत / विनोद दास" के अवतरणों में अंतर
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16:25, 24 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
क़ैदियो ! तुम जहाँ कहीं भी हो
अपने सभी डर, अपनी चीख़ें और ऊब को
मेरे पास रवाना कर दो
सभी समुद्री तट के मछुआरों
अपने सभी ख़ाली जालों और समुद्री बीमारियों को
मेरे पास रवाना कर दो
हर खेत खलिहान के किसानों
अपने सभी फूलों, चिथड़ों
कटी-फटी छातियों, चीरे हुए पेटों
और उखाड़े गए नाख़ूनों को
मेरे पते पर यानी कि दुनिया के किसी कैफ़े में भेज दो
आदमी की तकलीफ़ों की
मैं एक बड़ी फ़ाइल तैयार कर रहा हूँ
भूखों के होंठों
और अभी भी इन्तज़ार कर रही उन पुतलियों के
एक बार दस्तख़त हो जाएँ
तो मैं उस फ़ाइल को ईश्वर को सौंपूँगा
हर जगह मौज़ूद
तुम अभागों के लिए
मुझे, बस, सबसे बड़ा डर यह लगता है
कि कहीं ईश्वर अनपढ़ न हो
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास