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"कोई नहीं मेरा यहाँ, मुझको कि जो पहचान दे / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर
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+ | फिर कौन मेरी ज़ीस्त को जीने का कुछ सामान दे। | ||
+ | राहे-अदब पर मैं चलूं ,मुझको अता कर हौस्ले, | ||
+ | मेरे ख़ुदा मेरे लिए , कुछ तो मुनासिब ज्ञान दे। | ||
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+ | ऐसा न हो संसार मे , मैं भूल जाऊँ ख़ुद को ही, | ||
+ | आ कर तू मेरे सामने मुझ पर ज़रा सा ध्यान दे। | ||
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+ | मैं आम लोगों से अलग, रब! काम करना चाहता, | ||
+ | जज़्बात जिस से तुल सकें वो जादुई मीज़ान दे। | ||
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+ | तेरी इनायत के सबब, ख़ामोश दुश्मन हो गए, | ||
+ | हम्दो-सना तेरी करूँ, मुझको ज़बां आसान दे। | ||
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+ | तौक़ीर तूने की अता, तौफ़ीक़ मुझको बख़्श दी, | ||
+ | अब चाहे कुछ तू दे न दे, रौशन मगर ईमान दे। | ||
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+ | तुहमत लगा मुझ पर कोई मंज़ूर है मुझको मगर, | ||
+ | तू ‘नूर’ मेरे इश्क़ को सब से अलग ही शान दे। | ||
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13:39, 27 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
कोई नहीं मेरा यहाँ, मुझको कि जो पहचान दे,
फिर कौन मेरी ज़ीस्त को जीने का कुछ सामान दे।
राहे-अदब पर मैं चलूं ,मुझको अता कर हौस्ले,
मेरे ख़ुदा मेरे लिए , कुछ तो मुनासिब ज्ञान दे।
ऐसा न हो संसार मे , मैं भूल जाऊँ ख़ुद को ही,
आ कर तू मेरे सामने मुझ पर ज़रा सा ध्यान दे।
मैं आम लोगों से अलग, रब! काम करना चाहता,
जज़्बात जिस से तुल सकें वो जादुई मीज़ान दे।
तेरी इनायत के सबब, ख़ामोश दुश्मन हो गए,
हम्दो-सना तेरी करूँ, मुझको ज़बां आसान दे।
तौक़ीर तूने की अता, तौफ़ीक़ मुझको बख़्श दी,
अब चाहे कुछ तू दे न दे, रौशन मगर ईमान दे।
तुहमत लगा मुझ पर कोई मंज़ूर है मुझको मगर,
तू ‘नूर’ मेरे इश्क़ को सब से अलग ही शान दे।