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"शाम है सुरमई / प्रेमलता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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शाम है सुरमई दीप जलने लगे।
तारे नभ के सभी तब चमकने लगे।
सरि किनारे लगी नाव पर सैर को,
थाम पतवार को हम विहरने लगे।
देख सुख दायिनीमंद शीतल अनिल
भाव मन में जगेहम चहकने लगे।
गंग धारा लहर अंक माँ का सहज,
स्नेह-सी वह छुवन हम महकने लगे।
स्वच्छ पावन रही देवि भागीरथी,
कर्म पातक मलिन आज करने लगे।
देश सुंदर रहे हम निरोगी सदा,
संपदा यह हमारी निखरने लगे।
ज्ञान गीता यहीं पुण्य सलिला मही,
प्रेम सरिता बही हम सँवरने लगे।