भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किनारे मिले / प्रेमलता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
ज्योति पावन जगे सत्य से मत डरो, | ज्योति पावन जगे सत्य से मत डरो, | ||
दीप के ही तले अंधियारे मिले। | दीप के ही तले अंधियारे मिले। | ||
+ | |||
+ | संग जीवन चला है इसे देखना, | ||
+ | प्रेम आधार मन बिन पुकारे मिले। | ||
</poem> | </poem> |
22:37, 30 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
तोड़ कर बंधनों, को किनारे मिले।
इष्ट की साधना, के सहारे मिले।
सूझती थी न कोई डगर अंध की
मन मिले तो वहाँ, चाँद तारे मिले।
प्रीति में पंथ हो वासना का नहीं,
हो सके पुण्य हरि रूप द्वारे मिले।
धो सकें मैल मन जो यही चाहना,
चाह मन में अगर बीच धारे मिले।
ज्योति पावन जगे सत्य से मत डरो,
दीप के ही तले अंधियारे मिले।
संग जीवन चला है इसे देखना,
प्रेम आधार मन बिन पुकारे मिले।