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Kavita Kosh से
अभिराम स्वप्न जागते हैं
आदमी ने कहा— कहा — आओ चलें, आगे और आगेऔरत ने कहा— कहा — आह ! मर्द क्यों नहीं समझ पाते औरत के
अन्तस में धधकते अँगारे, अन्तर-निहित रहस्य, कामनाएँ
और उनके दायरे ।