भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सीता: एक नारी / तृतीय सर्ग / पृष्ठ 4 / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
  
 
था निज तपस्या से भरत ने अवध को सिंचित किया     
 
था निज तपस्या से भरत ने अवध को सिंचित किया     
श्रीराम को समृद्ध, उर्वर राज्य हस्तान्त्रित किया
+
श्रीराम को समृद्ध, उर्वर राज्य हस्तांतरित किया
  
 
गणमान्य जन, कुलगुरु तथा निज परिजनों के सामने
 
गणमान्य जन, कुलगुरु तथा निज परिजनों के सामने
 
था राज्य-पालन का लिया संकल्प प्रभु श्रीराम ने
 
था राज्य-पालन का लिया संकल्प प्रभु श्रीराम ने
 
</poem>
 
</poem>

23:12, 5 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण

फिर नव दिवस के साथ ही तैयारियां होने लगीं-
श्रीराम के अभिषेक की; नव स्फूर्ति थी सब में जगी

तापस भरत को राज्य-संचालन नहीं स्वीकार था
होते उपस्थित राम के, जिनका प्रथम अधिकार था

बनकर तपस्वी था उन्होंने अवध का पालन किया
परित्याग जीवन के सभी भौतिक सुखों का कर दिया

रहते हुए भी अवध में वनवास वे सहते रहे
श्रीराम के वनगमन का नित प्रायश्चित करते रहे

चौदह बरस जिसकी प्रतीक्षा में उन्होंने तप किया
आया समय जिसके लिए इतना कठिन था व्रत लिया
 
बरसों बरस से चल रही थी यामिनी अब कट चुकी
लांछन लगा था वन गमन का, कालिमा वह हट चुकी

था निज तपस्या से भरत ने अवध को सिंचित किया
श्रीराम को समृद्ध, उर्वर राज्य हस्तांतरित किया

गणमान्य जन, कुलगुरु तथा निज परिजनों के सामने
था राज्य-पालन का लिया संकल्प प्रभु श्रीराम ने