भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्राण प्रिये जब तुम आओगी / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:33, 7 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण

प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

कब से बाट जोहते अपने, झूले को बाँधूँगा फिर से।
बौर लिए मदमाते सुरभित, आम्र-शाख के उच्च शिखर से।

बादल की उजली डलियों को,
पेंग बढ़ाकर छू आएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

कब से पड़ी उपेक्षित अपनी, वीणा के टूटे तारों को।
पुनः कसूँगा, जीवन फिर से, मिल जाएगा झंकारों को।

गूँजेगी स्वर लहरी अँगना,
बोल तुम्हारे जब छाएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

चिर-लंबित अपनी नौका पर, पाल सुनहरे मैं बाँधूँगा।
चंचल जल पर संग तुम्हारे, मैं पतवार पुनः साधूँगा।

संग संग चंदा-किरनों के
परी-देश हम हो आएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।