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"अब भी घुटनों के बल चलता / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर
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इसके मन को भाते | इसके मन को भाते | ||
02:04, 7 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण
अब भी घुटनों के बल चलता
बीते सत्तर साल
बड़ा नहीं होता यह बच्चा
अच्छा बाकी हाल
डाँट डपटकर पहले इसको
हँसते हुए रुलाते
फिर पकड़ाकर एक झुनझुना
रोता मन बहलाते
बेचारेपन में इसने है
लिया स्वयं को ढाल
मायावी आकर्षण में बिंध
सीढ़ी चढ़ता जाता
चुभ जाता तकुआ उँगली में
यह मूर्छित हो जाता
समझ नहीं किंचित पाता
बूढ़ी परियों की चाल
धीर और गंभीर सभी
नेपथ्य पकड़ रह जाते
हँसा सकें वे जोकर ही बस
इसके मन को भाते
बापू ! झुककर देखो
कैसा लोकतंत्र बेहाल