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यादें / लावण्या शाह

No change in size, 03:26, 3 अगस्त 2006
अम्मा के लिपटे हाथ आटे से,<br>
फिर सोँधी रोटी की खुशबु,<br>
बहनोँ का? वह निस्छल निश्छल हँसना<br>साथ साथ, रातोँ तक को जगना !<br>
वे शैशव के दिन थे न्यारे,<br>
आसमान पर कितने तारे!<br>
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