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प्रेम वनस्पति-रस की तरह
हमारे रक्त के पेड़ को सराबोर कर देता है
और हमारे चरम भौतिक आनन्द के बीज से
अर्क की तरह खींचता है अपनी विलक्षण गन्ध
हमारे भीतर चला आता है पूरा समुद्र
और भूख से व्याकुल रात
आत्मा अपनी लीक से बाहर जाती हुई, और
दो घण्टियाँ तुम्हारे भीतर हड्डियों में बजती हुईं
तुम्हारी देह का भार, रिक्त होता हुआ दूसरा समय ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल