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"चुनिंदा मुक्तक-2 / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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जल में डूबे मगर प्यास बाकी रही।
दिल ये टूटा मगर आस बाकी रही।
प्राण तो हो गये थे जुदा देह से-
लाश में धड़कनें सांस बाकी रही।
क्यों गुम-सुम से पंछी चहकने लगे।
चाँद तारे सभी क्यूं बहकने लगे।
क्या तुमने छुआ था इन्हें प्यार से-
कागज़ी फ़ूल जो ये महकने लगे।
हर रोज़ वो चाह़त को मेरी आज़माता है।
रहता है मेरे दिल में वो मुझको सताता है।
लेकिन ख़फ़ा उससे कभी मैं हो नहीं पाती-
रोता है बहुत ख़ुद भी जब मुझको रुलाता है।