भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चलो अब मिल भी लें / राजेन्द्र देथा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र देथा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:57, 29 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण

चलो अब मिल भी लें
सारी गिला-शिकवो
शिकायतों को दूर करें
कांकड पर अवस्थित
बोरड़ी के बैर खा कर
मीठे है बहुत इसलिए
मीठे हो चलें
चलो अब मिल भी लें।
तुम पणिहारी के वेश में
प्रतीक्षा करना
बीच गांव वाली
उन डिग्गीयों के पर
जहां गांव के सारे शक
समाप्त हो जाते है!