भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पिता की अंतःवेदना / एस. मनोज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एस. मनोज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:13, 9 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण
सोना सा सुत चला गया
सब सपनों को वह जला गया
हर पल लगता सोना आया
कुछ शुभ संदेशा है लाया
अब मम्मी का सिर सहलाएगा
कुछ बातों में बहलाएगा
फिर उठकर आएगी प्रतिमा
सोना हीरा की प्यारी मां
हीरा सत्यम हैं पुकार रहे
नित्यम मुकुंद हैं गुहार रहे
परिजन पुरजन सब रोते हैं
चाचा चाची ना सोते हैं
मैं आनंद आनंद पुकार रहा
उस दिव्य रूप को निहार रहा
उसकी ही बाट सजाता हूं
उसके ही गुण को गाता हूं
तू जीवन का एक सहारा था
तू सबका राज दुलारा था
बाहों में मेरे भर जा
तू देव लोक से वापस आ।
प्यारे आनंद की याद में