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"मन करता है / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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उन्हें समेटूँ,तुमको देदूँ
 
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प्यार की बातें
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आअो करें प्यार की बातें
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दिल जैसे घबराता है
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कैसे-कैसे संशय उठते
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क्या-क्या मन में आता है
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छूट न जाए साथ
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जतन से जिसको हमने जोड़ा था
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पाने को सान्निध्य तुम्हारा
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क्या-क्या छोड़ा-जोड़ा था
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समय हमारे बीच बैठकर
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टाँक गया कहनी-अनकहनी
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भूलें की थी,दर्प किया था
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चोटें की थी अौर सहा था
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आअो उसे मिटाएँ
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फिर से लिखें कहानी
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उन यादों की
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भूली-बिसरी बातें
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मेरी अौर तुम्हारी
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जिनसे शुरु किया था जीवन
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फिर दुहराएँ
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आअो करें प्यार की बातें ।
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फूल झर गए
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फूल झर गए।
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क्षण-भर की ही तो देरी थी
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अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी-
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इतने में सौरभ के प्राण हर गए;
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फूल झर गए।
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दिन-दो दिन जीने की बात थी,
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आख़िर तो खानी ही मात थी;
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फिर भी मुरझाए तो व्यथा भर गए-
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फूल झर गए।
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तुमको अौí मुझको भी जाना है-
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सृष्टि का अटल विधान माना है;
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लौटे कब प्राण गेह बाहर गए-
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फूल झर गए।
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फूलों सम आअो हँस हम भी झरें
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रंगों के बीच ही जिएँ अौí मरें
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पुष्प अरे गए किंतु खिलकर गए-
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फूल झर गए।
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00:14, 26 अगस्त 2008 का अवतरण

झर जाते हैं शब्द हृदय में

पंखुरियों-से

उन्हें समेटूँ,तुमको दे दूँ

मन करता है


गहरे नीले नर्म गुलाबी

पीले सुर्ख लाल

कितने ही रंग हृदय में

झलक रहे हैं


उन्हें सजाकर तुम्हें दिखाऊँ

मन करता है


खुशबू की लहरें उठती हैं

जल तरंग-सी

बजती है रागिनी हृदय में

उसे सुनूँ मैं साथ तुम्हारे

मन करता है


कितनी बातें

कितनी यादें भाव-भरी

होंठों तक आतीं

झर जाते हैं शब्द

हृदय में पंखुरियों-से

उन्हें समेटूँ,तुमको देदूँ

मन करता है।