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"मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो / दीनानाथ सुमित्र" के अवतरणों में अंतर

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हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को इश्क़ से यारी
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मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो
इसी को सर पे रक्खा है, नहीं यह फूल से भारी
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जैसे जीते हैं खूब जीते हैं
 
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हम नहीं हैं वो जार-जमीं वाले
जमाना जिस तरफ जाये, हमन क्यों उस तरफ जाये
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जो गरीबों के लहू पीते हैं  
हमन की राह अलबेली, हमन की राह है प्यारी
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हमन इंसान है, इंसान की ही दोस्ती चाहे
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बदरिया है, बरसते हैं, हमन की रंग खुद्दारी
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समय का कबीरा कहिये, जलाकर घर जिए अब तक
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न कोई हमन जैसा है, हमन से दूर मक्कारी
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सुमित्तर भी हमन जैसा, बड़ा दिलदार मनुष्य है
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रहा संसार से उबा, मगर लगता है संसारी
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23:06, 24 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो
जैसे जीते हैं खूब जीते हैं
हम नहीं हैं वो जार-जमीं वाले
जो गरीबों के लहू पीते हैं