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"सपने / मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'" के अवतरणों में अंतर

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00:01, 25 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

सपनो पर मैँ क्या कहूं, होते बड़े विचित्र।
कभी कभी खिंच जात हैं, अजब गजब के चित्र।।
अजब गजब के चित्र, रात कल देखा सपना।
आयी एक चुड़ैल, चाँप दी गर्दन अपना।
मैं चिल्लाया भाग रे, हट्ट जा दूर ओ डाइन।
दंग हो गया देख, सामने खड़ी पड़ाइन।।

कुछ सपनो को देख कर, होता मन में रोष।
कभी कभी हो जात हैं, सपने में भी दोष।।
सपने में भी दोष, डॉक्टर रोग बताते।
कुछ सज्जन तो महज, इसे संजोग बताते।
कह मुन्ना कविराय, फुरफुरी दिल पर छाती।
सपने में ही भले, करीना तो मिल जाती।।