भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ सरस्‍वती / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कुमार मुकुल
 
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
+
|संग्रह=समुद्र के आँसू / कुमार मुकुल
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>

19:18, 28 अगस्त 2008 का अवतरण

मां सरस्‍वती! वरदान दो
कि हम सदा फूलें-फलें
अज्ञान सारा दूर हो
और हम आगे बढ़ें
अंधकार के आकाश को
हम पारकर उपर उठें
अहंकार के इस पाश को
हम काट कर के मुक्‍त हों
क्रोध की अग्नि हमारी
शेष होकर राख हो
प्रेम की धारा मधुर
फिर से हृदय में बह चले
मां सरस्‍वती! वरदान दो
कि हम सदा फूलें-फलें!