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:मत माँगो रे जड़ पाहन से
::गा-गा अगणित वंदन के स्वर !
:::
:इतना भी रे क्या पागलपन,
:इतनी भी क्या यह मौन लगन,
:तन-मन-धन, जीवन-सुख, वैभव
::दुनिया के किस आकर्षण पर ?
:::
:यह मानवता का धर्म नहीं,
:यह मानवता का मर्म नहीं,
:संघर्षों से घबराकर जो
:सभय पलायन धारण करता
:: कह, ‘मिथ्या जग, जीवन नश्वर’! :::::
:जीवन जब है एक समस्या —
:कर्मों का ही नाम तपस्या,
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