भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहली पेंशन /अनामिका" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(हिज्जे)
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अनामिका
 
|रचनाकार=अनामिका
|संग्रह=
+
|संग्रह= अनुष्टुप / अनामिका
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
श्रीमती कार्लेकर
 +
अपनी पहली पेंशन लेकर
 +
जब घर लौटीं–
 +
सारी निलम्बित इच्छाएँ
 +
अपना दावा पेश करने लगीं। 
  
 +
जहाँ जो भी टोकरी उठाई
 +
उसके नीचे छोटी चुहियों-सी
 +
दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ! 
  
श्रीमती कार्लेकर<br>
+
श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं  
अपनी पहली पेंशन लेकर<br>
+
क्या-क्या ख़रीदें, किससे कैसे निबटें !  
जब घर लौटीं–<br>
+
सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाई  
सारी निलम्बित इच्छाएँ<br>
+
झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर
अपना दावा पेश करने लगीं।<br><br>
+
चूहेदानी में इच्छाएँ फँसाईं  
 
+
(हुलर-मुलर सारी इच्छाएँ)  
जहाँ जो भी टोकरी उठाई<br>
+
और कहा कार्लेकर साहब से–  
उसके नीचे छोटी चुहियों-सी<br>
+
“चलो ज़रा, गंगा नहा आएँ!”
दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ!<br><br>
+
</poem>
 
+
श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं<br>
+
क्या-क्या ख़रीदें, किससे कैसे निबटें !<br>
+
सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाई<br>
+
झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर<br><br>
+
चूहेदानी में इच्छाएँ फँसाईं<br>
+
(हुलर-मुलर सारी इच्छाएँ)<br>
+
और कहा कार्लेकर साहब से–<br>
+
“चलो ज़रा, गंगा नहा आएँ!”<br><br>
+

14:37, 24 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

श्रीमती कार्लेकर
अपनी पहली पेंशन लेकर
जब घर लौटीं–
सारी निलम्बित इच्छाएँ
अपना दावा पेश करने लगीं।

जहाँ जो भी टोकरी उठाई
उसके नीचे छोटी चुहियों-सी
दबी-पड़ी दीख गई कितनी इच्छाएँ!

श्रीमती कार्लेकर उलझन में पड़ीं
क्या-क्या ख़रीदें, किससे कैसे निबटें !
सूझा नहीं कुछ तो झाड़न उठाई
झाड़ आईं सब टोकरियाँ बाहर
चूहेदानी में इच्छाएँ फँसाईं
(हुलर-मुलर सारी इच्छाएँ)
और कहा कार्लेकर साहब से–
“चलो ज़रा, गंगा नहा आएँ!”