"एक औरत का पहला राजकीय प्रवास /अनामिका" के अवतरणों में अंतर
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− | वह होटल के कमरे में दाख़िल हुई | + | वह होटल के कमरे में दाख़िल हुई! |
अपने अकेलेपन से उसने | अपने अकेलेपन से उसने | ||
बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। | बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। | ||
− | कमरे में अंधेरा | + | कमरे में अंधेरा था। |
घुप्प अंधेरा था कुएँ का | घुप्प अंधेरा था कुएँ का | ||
− | उसके भीतर भी | + | उसके भीतर भी! |
− | सारी दीवारें टटोली अंधेरे में | + | सारी दीवारें टटोली अंधेरे में, |
− | लेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं था | + | लेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं था! |
− | पूरा खुला था दरवाज़ा | + | पूरा खुला था दरवाज़ा, |
− | बरामदे की रोशनी से ही काम चल रहा था | + | बरामदे की रोशनी से ही काम चल रहा था! |
− | सामने से | + | सामने से गुज़रा जो ‘बेयरा’ तो |
− | आर्त्तभाव से उसे देखा | + | आर्त्तभाव से उसे देखा! |
− | उसने उलझन समझी और | + | उसने उलझन समझी, और |
बाहर खड़े-ही-खड़े | बाहर खड़े-ही-खड़े | ||
− | + | दरवाज़ा बंद कर दिया! | |
− | जैसे ही | + | जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, |
− | बल्बों में रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमल | + | बल्बों में रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमल! |
− | “भला बंद होने से रोशनी का क्या है रिश्ता?” उसने सोचा। | + | “भला बंद होने से रोशनी का क्या है रिश्ता?” |
+ | उसने सोचा। | ||
− | डनलप पर लेटी | + | डनलप पर लेटी, |
− | चटाई चुभी घर की, अंदर | + | चटाई चुभी घर की, अंदर कहीं–रीढ़ के भीतर! |
− | तो क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरत | + | तो क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरत? |
सात गलीचों के भीतर भी | सात गलीचों के भीतर भी | ||
उसको चुभ जाता है | उसको चुभ जाता है | ||
− | कोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का | + | कोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का? |
− | पढ़ने को बहुत-कुछ धरा था | + | पढ़ने को बहुत-कुछ धरा था, |
− | पर उसने | + | पर उसने बाँची टेलीफ़ोन तालिका |
और जानना चाहा | और जानना चाहा | ||
अंतरराष्ट्रीय दूरभाष का ठीक-ठीक ख़र्चा। | अंतरराष्ट्रीय दूरभाष का ठीक-ठीक ख़र्चा। | ||
फिर, अपनी सब डॉलरें ख़र्च करके | फिर, अपनी सब डॉलरें ख़र्च करके | ||
− | उसने किए तीन अलग-अलग | + | उसने किए तीन अलग-अलग कॉल! |
सबसे पहले अपने बच्चे से कहा | सबसे पहले अपने बच्चे से कहा | ||
“हैलो-हैलो, बेटे | “हैलो-हैलो, बेटे | ||
− | पैकिंग के वक्त... सूटकेस में ही तुम | + | पैकिंग के वक्त... सूटकेस में ही तुम ऊँघ गए थे कैसे... |
सबसे ज़्यादा याद आ रही है तुम्हारी | सबसे ज़्यादा याद आ रही है तुम्हारी | ||
तुम हो मेरे सबसे प्यारे!” | तुम हो मेरे सबसे प्यारे!” | ||
− | अंतिम | + | अंतिम दोनों पंक्तियाँ अलग-अलग उसने कहीं |
− | + | आफ़िस में खिन्न बैठे अंट-शंट सोचते अपने प्रिय से | |
− | फिर, चौके में चिंतित, बर्तन | + | फिर, चौके में चिंतित, बर्तन खटकाती अपनी माँ से। |
− | ... अब उसकी हुई | + | ... अब उसकी हुई गिरफ़्तारी। |
पेशी हुई ख़ुदा के सामने | पेशी हुई ख़ुदा के सामने | ||
कि इसी एक ज़ुबाँ से उसने | कि इसी एक ज़ुबाँ से उसने | ||
तीन-तीन लोगों से कैसे यह कहा | तीन-तीन लोगों से कैसे यह कहा | ||
− | “सबसे | + | “सबसे ज़्यादा तुम हो प्यारे !” |
यह तो सरासर है धोखा | यह तो सरासर है धोखा | ||
− | सबसे | + | सबसे ज़्यादा माने सबसे ज़्यादा! |
लेकिन, ख़ुदा ने कलम रख दी | लेकिन, ख़ुदा ने कलम रख दी |
14:56, 24 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
वह होटल के कमरे में दाख़िल हुई!
अपने अकेलेपन से उसने
बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया।
कमरे में अंधेरा था।
घुप्प अंधेरा था कुएँ का
उसके भीतर भी!
सारी दीवारें टटोली अंधेरे में,
लेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं था!
पूरा खुला था दरवाज़ा,
बरामदे की रोशनी से ही काम चल रहा था!
सामने से गुज़रा जो ‘बेयरा’ तो
आर्त्तभाव से उसे देखा!
उसने उलझन समझी, और
बाहर खड़े-ही-खड़े
दरवाज़ा बंद कर दिया!
जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ,
बल्बों में रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमल!
“भला बंद होने से रोशनी का क्या है रिश्ता?”
उसने सोचा।
डनलप पर लेटी,
चटाई चुभी घर की, अंदर कहीं–रीढ़ के भीतर!
तो क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरत?
सात गलीचों के भीतर भी
उसको चुभ जाता है
कोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का?
पढ़ने को बहुत-कुछ धरा था,
पर उसने बाँची टेलीफ़ोन तालिका
और जानना चाहा
अंतरराष्ट्रीय दूरभाष का ठीक-ठीक ख़र्चा।
फिर, अपनी सब डॉलरें ख़र्च करके
उसने किए तीन अलग-अलग कॉल!
सबसे पहले अपने बच्चे से कहा
“हैलो-हैलो, बेटे
पैकिंग के वक्त... सूटकेस में ही तुम ऊँघ गए थे कैसे...
सबसे ज़्यादा याद आ रही है तुम्हारी
तुम हो मेरे सबसे प्यारे!”
अंतिम दोनों पंक्तियाँ अलग-अलग उसने कहीं
आफ़िस में खिन्न बैठे अंट-शंट सोचते अपने प्रिय से
फिर, चौके में चिंतित, बर्तन खटकाती अपनी माँ से।
... अब उसकी हुई गिरफ़्तारी।
पेशी हुई ख़ुदा के सामने
कि इसी एक ज़ुबाँ से उसने
तीन-तीन लोगों से कैसे यह कहा
“सबसे ज़्यादा तुम हो प्यारे !”
यह तो सरासर है धोखा
सबसे ज़्यादा माने सबसे ज़्यादा!
लेकिन, ख़ुदा ने कलम रख दी
और कहा–
“औरत है, उसने यह ग़लत नहीं कहा!”