भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छूटना / अनामिका" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका |अनुवादक= |संग्रह=अनुष्टु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:28, 25 जनवरी 2020 का अवतरण
धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं,
बढ़ना सिमट आना है वापस--अपने भीतर!
पौधा पत्ती-पत्ती फैलता
बच जाता है बीज-भर,
और अचरज में फैली आँखें
बचती हैं बस बूँद-भर!
छूट रही है पकड़ से
अभिव्यक्ति भी धीरे-धीरे!
किसी कालका-मेल से धड़धड़ाकर
सामने से जाते हैं शब्द निकल!
एक पैर हवा में उठाये,
गठरी ताने
बिल्कुल आवाक खड़े रहते हैं
गंतव्य!