"धवल धरा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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ये पाप बड़ा। | ये पाप बड़ा। | ||
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+ | हिम-अंधड़ | ||
+ | करे क्रुद्ध गर्जन | ||
+ | बधिर नभ। | ||
+ | 207 | ||
+ | घन गर्जन | ||
+ | बधिर हुआ नभ | ||
+ | चपलापात। | ||
+ | 208 | ||
+ | कुटिल द्युति | ||
+ | चीरती चपला की | ||
+ | अम्बर काँपे। | ||
+ | 209 | ||
+ | रुके न अश्रु | ||
+ | कूक मारके रोए | ||
+ | बेबस मेघा। | ||
+ | 210 | ||
+ | छिड़ा दंगल | ||
+ | फट पड़ा बदरा | ||
+ | उजड़ी बस्ती। | ||
+ | 211 | ||
+ | अरी ओ धूप! | ||
+ | कहाँ से ले आई तू | ||
+ | स्वर्णिम रूप। | ||
+ | 212 | ||
+ | छत पे बैठा | ||
+ | सूप भर सूरज | ||
+ | बाँटता धूप। | ||
+ | 213 | ||
+ | धूप मुस्कान | ||
+ | दो पल क्या बिखरी | ||
+ | मिटी थकान। | ||
+ | 214 | ||
+ | छोड़ो क्रन्दन | ||
+ | दो पल का जीवन | ||
+ | दर्द न बाँटो । | ||
+ | 215 | ||
+ | जीभ की कैंची | ||
+ | सुख -पगी चादर | ||
+ | काटी तो रोए। | ||
+ | 216 | ||
+ | पूजा से छूटे | ||
+ | जीभ की छुरी लेके | ||
+ | शत्रु -से टूटे। | ||
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06:16, 30 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
201
धवल धरा
सूरज का रथ भी
आने से डरा।
202
हिम का गर्व
कर देती है खर्व
नन्ही-सी दूब।
203
चिट्टी चादर
भोर में ही बिछाई
बैठो तो भाई।
204
संताप बड़ा
किसी का दुख पूछो-
ये पाप बड़ा।
205
सोया है शीत
ओढ़ शुभ्र दूकूल
गहन निद्रा।
206
हिम-अंधड़
करे क्रुद्ध गर्जन
बधिर नभ।
207
घन गर्जन
बधिर हुआ नभ
चपलापात।
208
कुटिल द्युति
चीरती चपला की
अम्बर काँपे।
209
रुके न अश्रु
कूक मारके रोए
बेबस मेघा।
210
छिड़ा दंगल
फट पड़ा बदरा
उजड़ी बस्ती।
211
अरी ओ धूप!
कहाँ से ले आई तू
स्वर्णिम रूप।
212
छत पे बैठा
सूप भर सूरज
बाँटता धूप।
213
धूप मुस्कान
दो पल क्या बिखरी
मिटी थकान।
214
छोड़ो क्रन्दन
दो पल का जीवन
दर्द न बाँटो ।
215
जीभ की कैंची
सुख -पगी चादर
काटी तो रोए।
216
पूजा से छूटे
जीभ की छुरी लेके
शत्रु -से टूटे।