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"छूटना / अनामिका" के अवतरणों में अंतर

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धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं,
 
धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं,
बढ़ना सिमट आना है वापस--अपने भीतर!
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बढ़ना सिमट आना है वापस — अपने भीतर !
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पौधा पत्ती-पत्ती फैलता
 
पौधा पत्ती-पत्ती फैलता
 
बच जाता है बीज-भर,
 
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और अचरज में फैली आँखें
 
और अचरज में फैली आँखें
बचती हैं बस बूँद-भर!
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बचती हैं, बस, बून्द-भर !
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छूट रही है पकड़ से
 
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अभिव्यक्ति भी धीरे-धीरे!
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किसी कालका-मेल से धड़धड़ाकर
 
किसी कालका-मेल से धड़धड़ाकर
सामने से जाते हैं शब्द निकल!
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एक पैर हवा में उठाये,
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गठरी ताने
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बिल्कुल आवाक खड़े रहते हैं
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एक पैर हवा में उठाए,
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बिल्कुल अवाक खड़े रहते हैं
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गन्तव्य !
 
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15:43, 8 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

धीरे-धीरे जगहें छूट रही हैं,
बढ़ना सिमट आना है वापस — अपने भीतर !

पौधा पत्ती-पत्ती फैलता
बच जाता है बीज-भर,
और अचरज में फैली आँखें
बचती हैं, बस, बून्द-भर !

छूट रही है पकड़ से
अभिव्यक्ति भी धीरे-धीरे !
किसी कालका-मेल से धड़धड़ाकर
सामने से जाते हैं शब्द निकल !

एक पैर हवा में उठाए,
गठरी ताने
बिल्कुल अवाक खड़े रहते हैं
गन्तव्य !