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"गुरु महिमा दोहे / पद्मजा बाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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गुरु की महिमा बहुत है,
मिल जाए यदि नेक
मंजिल समझो, मिल गई
बिन नौका बिन टेक।
सच्चा गुरु दिखाएगा
हर अच्छी ही राह,
कलुष तुम्हारा घुल गया,
कंचन हो गयी चाह।
ज्ञान बिना खुलते नहीं,
मोहपाश के बन्ध,
गुरु प्रकाश से ही कटे,
हर विपदा के फंद।
प्रभु को पाना है अगर,
गुरु का कर सत्संग,
मूल मंत्र मिल जाएगा,
सद्ग्रंथों के संग।
कठिन तपस्या-साधना,
मोह-मान का त्याग,
सत्कर्मों से ही मिटे,
जन्म-मरण का राग।
जहाँ गुरु वहाँ स्वर्ग है,
पावन है सब पर्व।
सतगुरु की कृपा से
जीवन हो गया धन्य।