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"सहरा में तिश्ननगी अपनी / आनन्द किशोर" के अवतरणों में अंतर

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22:17, 17 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

भटकती फिरती है सहरा में तिश्नगी अपनी
गुज़र रही है सराबों में ज़िन्दगी अपनी

मुहब्बतों के सफ़र में क़दम क़दम पे यहाँ
ग़मों की आग में जलती है हर ख़ुशी अपनी

ये और बात है क़िस्मत में हारना था लिखा
मगर न हमको थी उम्मीद हार की अपनी

हज़ार ऐब हज़ारों के हमने गिनवाये
लबों पे सबके है इस बार बस कमी अपनी

ग़मों का दौर भी काटा है हमने हंसकर के
गुज़र रही है मज़े से ये ज़िन्दगी अपनी

फ़क़त ग़ज़ल की बिना पर हमें सुना दी सज़ा
ग़ज़ल वो सच में मगर लाजवाब थी अपनी

हरेक लफ़्ज़ में ढाला है दर्द को अपने
हमें अज़ीज़ है 'आनन्द' शाइरी अपनी