भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कैसे हो सुनवाई / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:44, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
आँगन में दलदल फैली है
दीवारों पर काई
घर ही घर का दोषी हो जब
कैसे हो सुनवाई
पूरे घर में हरा-भरा है
बस तुलसी का पत्ता
चार रोटियाँ का पाया है
घर ने जीवन भत्ता
आह-रुदन में बदल गई है
तुलसी की चौपाई
झुकी कमर ले पड़ी हुई है
उधड़ी खाट पुरानी
हँसी ठहाके उत्सव लगते
बीती एक कहानी
शहर गई खुशियों की आखिर
कौन करे भरपाई
जो कल छत थे, नई मंजिलों
को वे ढ़ाल रहे हैं
नए-नए सपनों को आँखों में वे
पाल रहे हैं
और नीव दब रही बोझ से
झेल रही तन्हाई