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"दिन-रात ढूँढता तुझको मन / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
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− | दिन-रात ढूँढता तुझको | + | दिन-रात ढूँढता तुझको मन। |
− | बीती जीवन की घटनाएँ | + | बीती जीवन की घटनाएँ |
− | सुधियाँ बनकर मन पर | + | सुधियाँ बनकर मन पर छातीं, |
− | मेरे मन को विह्वल करके | + | मेरे मन को विह्वल करके |
− | यह नयनों तक | + | यह नयनों तक हैं आ जातीं। |
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− | + | तब दर्द, आह, तन्हाई में | |
− | + | छाने लगते नयनों पर घन। | |
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− | जब बार-बार चिल्लाता हूँ | + | जैसे तू मुझे बुलाती थी |
+ | स्वर वही गूँजते कानों में, | ||
+ | फिर से जग जाते हैं जैसे | ||
+ | नव प्राण हृदय-अरमानों में। | ||
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+ | फिर मुझे जलाने लगता है | ||
+ | मेरे मन उपजा द्वन्द्व-दहन। | ||
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+ | जब बार - बार चिल्लाता हूँ | ||
तब कंठ करुण स्वर गाता है, | तब कंठ करुण स्वर गाता है, | ||
− | मेरे पीड़ामय शब्दों से | + | मेरे पीड़ामय शब्दों से |
− | कागज़ सारा रँग जाता | + | कागज़ सारा रँग जाता है। |
− | ये कविताएँ ही करती हैं | + | |
− | जीवन का कम | + | ये कविताएँ ही करती हैं |
+ | जीवन का कम एकाकीपन। | ||
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15:58, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
दिन-रात ढूँढता तुझको मन।
बीती जीवन की घटनाएँ
सुधियाँ बनकर मन पर छातीं,
मेरे मन को विह्वल करके
यह नयनों तक हैं आ जातीं।
तब दर्द, आह, तन्हाई में
छाने लगते नयनों पर घन।
जैसे तू मुझे बुलाती थी
स्वर वही गूँजते कानों में,
फिर से जग जाते हैं जैसे
नव प्राण हृदय-अरमानों में।
फिर मुझे जलाने लगता है
मेरे मन उपजा द्वन्द्व-दहन।
जब बार - बार चिल्लाता हूँ
तब कंठ करुण स्वर गाता है,
मेरे पीड़ामय शब्दों से
कागज़ सारा रँग जाता है।
ये कविताएँ ही करती हैं
जीवन का कम एकाकीपन।